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Thursday 24 August 2017

हिन्दू धर्म की मूर्खताएं


1- सती प्रथा सिर्फ़ हिन्दू धर्म में ही पायी जाती थी ।

मृतक के बच्चे चाहे भीख माँगे या कोठे पर पलें, परन्तु विधवा पत्नी को पति के साथ ही जलना होता था I

2- जन्म से छोटा या बड़ा,  हिंदू धर्म मे शुरू से ही तय हो जाता था ।

बाबा साहेब आंबेडकर तो पण्डित जवाहर लाल नेहरू से चार गुना ज्यादा योग्य और महान थे, लेकिन कुछ नालायक मनुवादियों ने मरते दम तक बाबा साहेब को सम्मान नही दिया ।

3- लोग पढ़ेंगे या नाली साफ करेंगे, यह बात भी हिन्दू धर्म में जन्म से ही तय हो जाती थी ।

4- कोई इंसान इज़्ज़तदार  बनेगा या गालियाँ सुनने की मशीन बनेगा,  यह बात भी हिन्दू धर्म जन्म से ही तय करता रहा है I

5- लोग कौन सा काम करेंगे और  कौन सा नही करेंगे,  यह बात भी हिंदू धर्म जन्म से तय कर देता था I

6-  ज्यादातर ब्राह्मणों के तो मज़े ही मज़े थे, क्योंकि उनके लिए तो जन्म से ही सुख, सम्मान और सुविधाओं के रास्ते खुल जाते थे ।

कुछ ब्राह्मण तो  चार छः श्लोक और चार छः  कथाएँ सुनाकर पूरी जिंदगी भर खाते रहते थे, उन्हें ज्यादा मेहनत करने की कोई जरूरत ही नही पड़ती थी ।

और जो भी आदमी ब्राह्मणवाद का विरोध करता था, कटटर ब्राह्मण उसे अपनी साजिशों से बर्बाद कर देते थे ।

7- गरीबों की कन्याओं को मंदिर मे देवदासी बनाकर उनका यौन शोषण करने की मूर्खतापूर्ण परम्परा भी हिन्दू धर्म में ही पायी जाती थी ।

दहेज जैसा मूर्खतापूर्ण कार्य हिन्दू धर्म मे बड़ी सादगी से होता रहा है I

8- हिन्दू धर्म में एक तरफ महिला की मूर्ति बनाकर पूजते हैं, दूसरी तरफ भारत में पिछले 10 साल मे करोड़ों कन्याओं की भ्रूण हत्या कर दी गयी है, मनुस्मृति ने तो महिलाओं की गरिमा को खत्म कर दिया है ।

9- जातिप्रथा हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी मूर्खतापूर्ण खोज है, जाति मरते दम तक इंसान का पीछा नही छोड़ती ।

बाबा साहेब आंबेडकर, कांशीराम साहेब, और मायावती जी जैसे नेता पूरी जिंदगी जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ते रहे हैं,  लेकिन कटटर मनुवादी किसी ना किसी रूप में जाति व्यवस्था को बचा ही लेते हैं ।

10- बाल विवाह तो हिंदुओं की शान रही हैं I

11- अक्सर अमीरी-ग़रीबी भी हिन्दू धर्म में जाति के अनुसार ही तय होती रही  है ।

ज्यादातर कटटर मनुवादी इस बात को बर्दाश्त ही नही कर पाते कि SC और ST समाज के लोग अमीर बनकर सुख, सम्मान और शान से जी सकें ।

अगर SC या ST समाज का कोई अफसर या नेता थोड़ा अमीर होने लगता है, तो कटटर हिंदुओं की आँखों में वो काफी ज्यादा खटकता रहता है ।

कुछ कटटर हिन्दूओं को तब तक शान्ति नही मिलती, जब तक वो SC और ST अफसरों और नेताओं को भ्रष्टाचार के मामलों फंसा नही देते ।

12- ज़मींदार भी यहाँ जाति के आधार पर होते रहे हैं ।

SC और ST समाज के किसान कहीं जमींदार ना बन जाएँ, इसीलिए उनकी जमीनें छीन ली जाती थीं ।

13- हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने कोई महान खोज नही कीं ।

जितनी भी खोजें कीं, उनमे से ज्यादातर खोजें मूर्खतापूर्ण ही थीं,   जिनका कोई उपयोग समाज के लिए नहीं किया जा सकता ।

14- जिस तरह से SC और ST समाज के लोगों को पढ़ने से रोका गया,   वैसा कमीनापन किसी और धर्म में नही पाया गया है ।

15- नीची जाति की महिलाओं का बलात्कार करने  को कुछ लोग अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते रहे ।

और नीची जाति के लोग जब विरोध करते थे, तो उन्हें उलटा लटकवाने की मूर्खतापूर्ण परम्परा भी हिन्दू धर्म में रही है ।

लेकिन फूलन देवी जैसी बहादुर महिला ने अपने साथ हुए जुल्म का सही बदला लेकर साबित कर दिया कि SC, ST और OBC समाज के लोग हालात के शिकार तो हैं, लेकिन किसी के सामने झुकने को तैयार नही हैं ।

16- कुछ हरामखोरों ने तो दलितों को कभी स्कूलों मे घुसने ही नही दिया,  क्या कोई और धर्म ऐसा कर सकता हैं?

17- जिन मंदिरों में कुत्ते और बिल्ली भी घुस जाते थे, उन मंदिरों से SC और ST समाज के लोगों को गालियाँ देकर भगा दिया जाता था ।

लेकिन SC और ST समाज के करोड़ों जागरूक लोगों ने हिन्दू धर्म को ठुकराकर मन्दिरों को भी टाटा बाय बाय कर दिया, हमेशा हमेशा के लिए ।

बहुत कुछ है हिन्दू धर्म की मूर्खताओं की धज्जिया उड़ाने को, लेकिन अभी सिर्फ  इतना ही काफी है ।

हिंदू धर्म बर्बाद हुआ, क्योंकि यहाँ:---
--बच्चा हो, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–नाम रखो,  तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–गृह प्रवेश करो, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–पाठ करवाओ,  तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–कथा करवाओ, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–मंदिर जाओ, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–शादी हो,  तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–कोई मर गया हो,  तो भी ब्राह्मण को पैसे खिलाओ!!

दरअसल ब्राह्मणों ने खुद ही हिन्दू धर्म को तमाशा बना दिया है ।

ब्राह्मणों ने हज़ारों साल तक sc/st/obc के पूर्वजो को खूब गालियाँ
सुनवाई है लेकिन आजकल खुद भी हर जगह गालिया ही सुन रहे हैं
अगर आपको विश्वास न हो तो बसपा ,बामसेफ ,आरपीआई के कार्यक्रमों
मेंमें जाकर देख लीजिये ।
इसके बावजूद कुछ ब्राह्मण तो अभी भी जाति व्यवस्था को सही साबित करने  की कोशिश करते हैं
रही सही कसर पाखंडी बाबाओ ने पूरी कर दी है।
पाखंडी बाबाओ ने धर्म के नाम पर काफी लूट खसोट मचा रखी है

निर्मल बाबा
सुधांशु बाबा
इच्छाधारी बाबा
कच्छाधारी बाबा
और भी सारे पाखंडी बाबाओं ने धर्म के नाम पर यापमी दुकान खोलकर
लूट मचा रखी है
ज्यदातर पाखंडी बाबा दूसरे लोगों को तो माया मोह से दूर रहने के उपदेश
देते रहते हैं लेकिन खुद अय्यासी करते रहते हैं।
दरअसल हिन्दू धर्म पूरी तरह से नौटंकी के सिवा कुछ भी नहीं है ।
क्योकि rss सिफ धर्मान्तरण पर बोलता है लेकिन हिन्दू धर्म में घुसी
हुई जाति व्यवस्था, नफरत ,हरामखोरी और पाखंड पर कुछ नहीं बोलता
रामराज में हिन्दू धर्म की नैया में सवार होकर लूट मचने वाले पाखंडी
बाबा ही सबसे ज्यादा मजे में हैं वैसे हिन्दू धर्म में सुधार होना ही मुश्किल है ।

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Wednesday 23 August 2017

फर्जी स्वतंत्रता

1947 को मिली हुई आज़ादी सभी लोगों कि ना होकर केवल सत्ता का हस्तांतरण है। याने अंग्रेजों ने भारत के लोगो को सत्ता सौंप दी। इसलिए ये हमारे आज़ादी का दिन नहीं है।
भारत में रहनेवाला बहुजन समाज आज भी गुलाम है। क्योंकी आज़ादी का मतलब अपने भविष्य का फैसला करने का, खुद निर्णय लेना माने आज़ादी। आज जिन लोगो के लिए ये आज़ादी है उन आज़ाद लोगों को अपले भविष्य का निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। उनके भविष्य का निर्णय सरकार ले रही है। अगर आज़ादी का मतलब अपने भविष्य का फैसला करने का निर्णय लेना इस बात को थोडी देर के लिए सच माने तो सही में बहुजन समाज के लोगो को अपने निर्णय लेने का अधिकार है क्या? ऐसा सवाल खडा होता है।

   ब्राम्हणो के तथाकथित आज़ादी के आंदोलन में बहुजन समाज के महापुरुष सामील नहीं थे। इसलिए भी कहा जा सकता है की ये बहुजन के आजादी का आंदोलन नहीं था। क्योंकी ये आजादी का आंदोलन बहुूजन समाज के लिए नहीं था केवल और केवल ब्राम्हणो के आजादी के लिए था ऐसा हमारे महापुरुषों को लगता था। इसलिए बहुजन समाज के महापुरुष इस आजादी के आंदोलन में सामील नहीं थे। अगर हमारे महापुरुष ब्राम्हणो के आजादी के आंदोलन में सामील नहीं थे तो क्या कर रहे थे? ऐसा सवाल कुछ लोग खडा कर सकते है। हमारे महापुरुष ब्राम्हणो के आजादी के आंदोलन में सामील ना होकर बहुजन समाज के आजादी का अलग से आंदोलन चला रहे ​थे। क्यों की उन्हे पता था हमे और हमारे समाज को इंग्रजो ने नहीं तो ब्राम्हणो ने, उनकी व्यवस्थाने गुलाम बनाया है। इसलिए हमारे महापुरुषों का आंदोलन इंग्रजो के गुलामी से नहीं तो ब्राम्हणो के गुलामी से मुक्त करने का था।

   तथाकथित आजादी के दुसरे दिन याने 16 अगस्त 1947 को जब पुरा देश आजादी का जल्लोष मना रहा था। ऐसे स्थिती में सत्यशोधक साहित्यरत्न अण्णाभाउ साठे ने जोर की बारीश होने के बाद भी और पोलीस प्रशासन मना करने के बाद भी मुंबई के आजाद मैदान मैदान पर एक मोर्चा निकाला था। उस मोर्चा में 60 हजार लोग सामील थे और उस मोर्चा। में नारा लगाया गया था की ये ​आजादी झुठी है, देश की जनता भूखी है। अण्णाभाउ साठे को इस मोर्चा के माध्यम से ये बताना था की हमारे लिये ये आजादी झुठी है। देश को मिली आजादी हमारे लिये नहीं है। क्यों की आज भी करोडो भूकमरी के शिकार है। याने अण्णाभाउ ने 1947 को कही हुयी बात 2017 में सच साबीत हो रही है। आज देश में बडे पैमाने पर अनाज उपलब्ध होने के बाद भी करोडो लोक भूकमरी के शिकार है। हजारो टन अनाज गोदामो में सड जाता है। हजारो टन अनाज चुहे खा जाते है मगर इस देश के मूलनिवासी लोगों को नहीं दिया जाता। इतना दूर तक अण्णाभाउ सोचते थे। इससे साबीत होता है की 1947की आजादी हमारी आजादी नहीं है तो विदेशी ब्राम्हणों की आजादी है।

   आजाद भारत के सबसे सयाने महापुरुष राष्ट्रपित जोतिराव फुले इन्हे गोखले और रानडे द्वारा आजादी के आंदोलन में सामील होने के लिए ​निमंत्रण दिया गया। इस पर राष्ट्रपिता जोतिराव फुले ने गोखले और रानडे को कहा। आज ब्राम्हण लोग हमारे समाज के साथ असमानता का व्यवहार करते हो अगर आपका इस देश पर राज आया तो आप हमारे साथ समता का बर्ताव करोगे इसकी क्या गॅरंटी? जाओ—जाओ मैं नहीं आउंगा आपके आजादी के आंदोलन में। इस पर राष्ट्रपिता जोतिराव फुले बहुजन समाज के लोगो का कहते है, जब तक अंग्रेज भारत में है तब तक आप लोगो को ब्राम्हणो की गुलामी से मुक्त होने का अवसर है। इसके लिए आप लोगो ने जल्दी करनी चाहिये। फुलेजी ने यह नहीं कहा की अंग्रजो के गुलामी गुलामी से मुक्त हो जाओ। फुले कहते है की जबतक अंग्रज है तबतक अवसर है ब्राम्हणो के गुलामी से मुक्त होने का। इसलिए आप लोगो ने जल्दबाजी करनी चाहिये। फुलेजी के कहे अनुसार यही सिद्ध होता है की तथाकथित आजादी का आंदोलन यह बहुजन समाज के आजादी का आंदोलन ना होकर ब्राम्हणो के आजादी का आंदोलन है। इसलिए फुलेजी भी ब्राम्हणो के आजादी के आंदोलन में सामील नहीं हुये। अपने समाज के लिए अलग से आजादी का आंदोलन चलाया।

   एक बार भटमान्य बाल गंगाधर तिलक छत्रपती शाहू महाराज को मिलने आये और कहने लगे की आप जैसे राजा लोग अगर आजादी के आंदोलन में सामील होते है तो देश को जल्द आजादी मिल सकती हैं इसपर छत्रपती शाहू महाराज तिलक को कहते है, तिलक आप जैसे ब्राम्हण लोग मेरे जैसे राजा लोगो का अपमान करते हो, शूद्र कहते हो अगर आपका राज आया तो यह जनता का क्या होगा? आगे शाहू महाराज तिलक को कहते है, तिलक मेरा समाज यह भेडबकरी का समाज है, मै उस समाज को लोमडी के झुंड में भेजना नहीं चाहता। इसका मतलब छत्रपती शाहू महाराज को भी लगता था की ये तथाकथित आजादी का आंदोलन ये बहुजन समाज के आजादी का
आंदोलनन नहीं था। अगर ऐसा होता तो शाहू महाराज सामील होते. शाहू महाराज इस आंदोलन में शामिल होते है  तो देश को जल्दी ही आजादी मिल सकती है इस पर बाबासाहेब अम्बेडकर ने लाला लाजपत राय को
कहा आप लोग मुझे भारत मै  पढ़ने नहीं देते। इधर आया हूँ तो कम से कम पढ़ने तो दो। भारत आने पर इस पर विचार करूँगा।
डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर भारत आने के बाद बहिष्कृत भारत  इस
अख़बार के अग्रलेख में लिखते हैं गुलामी में जिनकी बाते सहन नहीं होती
आजादी में उनकी लातें खानी होंगी आज बाबासाहेब की तब कही हुई
बाते सत्य साबित हो रही है। आज बहुजन समाज में भीषण समस्याएं
पैदा हो गई हैं अगर तथाकथित आजादी बहुजन समाज की होती
तो आजादी के 70 साल बाद भी ये समस्या पैदा न होती बल्कि इन
 समस्याओ का समाधान किया होता । बहुजन समाज आज भी ब्राह्मणवादियों की लातें खा रहा है।
आजादी  हमारे लिए एक अफवा है इसलिए दिल्ली लालकिले  से
हर साल प्रचार किया जाता है की हम आजाद हुए। जब दिल्ली के
लालकिले से प्रचार किया जाता है तब जो आजाद नहीं हुए हैं उन
लोगों को भी लगता है की हम आजाद हुए । ब्राह्मणवादियों के द्वारा
हर साल आजादी का ये प्रचार इसलिए किया जाता है ताकि जो लोग
आजाद नहीं हुए वो लोग अपनी आजादी का आंदोलन चला सकते है
ये लोग अपनी आजादी का आंदोलन न चलायें इसलिए दिल्ली के लालकिले से देश का प्रधान मंत्री हरसाल देश के लोगो को संबोधित
करता है और आजादी मिलने का दम भरता है



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Sunday 20 August 2017

नीच मनुवादी


फेसबुक ,व्हाट्सएप ,ट्विटर ...... इत्यादि सभी सोशल साइट्स पर जहा कहीं भी जाता हु ,सारे 3% विदेशी ब्राह्मणों का एक ही मकसद देखता हु ,की 85% OBC SC ST ,मुसलमानों को अपना दुश्मन मान ले ,पर जब मै 3% विदेशी ब्राह्मणों से अपने यह सवाल पूछता हु तो कोई ब्राह्मण मेरे सवाल का जवाब देने सामने नहीं आता ,
सवाल नं 1) क्या जातप्रथा (caste system) ,& वर्णप्रथा में पिछड़ी जातियों को मुसलमानों ने बाटा या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 2)क्या धर्म के नाम पर 33 करोड़ काल्पनिक देवी-देवताओं का निर्माण कर पथ्थरो की मूर्तियों के नामपर मुसलमान हमको ठग रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 3) क्या हमारे संवैधानिक ''रिजर्वेशन'' का विरोध मुसलमान कर रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 4)क्या हमारे महापुरुषों (रविदास कबीर तुकाराम फुले शाहूज महाराज बाबासाहब कांशीराम पेरियार इत्यादि )को षड्यंत्र से मारने का सफल या असफल प्रयास मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 5)हमारी महान हरप्पा मोहनजोदाड़ो की सिंध सभ्यता पर हमला मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी आर्य ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 6) mandal कमीसन को दबाने के लिए रथ यात्रा मुसलमानों ने निकाली या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 7)क्या सदियों से SC ST के लोगो के साथ अछूतपन का व्यवहार मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवान नं 8) आज भारत पर न्यायपालिका कार्यपालिका मीडिया विधायिका पर मुसलमानों का कब्ज्जा है या 3% विदेशी ब्राह्मणों का ?
सवान नं 9)क्या privatisation ,globalisation के नाम पर देश को निजी उद्योगपतियों के हाथो मुसलमान बेच रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 10)क्या शुद्र कहकर शिजाजी महाराज का राज्याभिषेक मुसलमानों ने नकारा या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 11)क्या शिवाजी महाराज का राज्यतिलक बाए पैर के अंगूठे से कर उस महाप्रतापी राजा का अपमान मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 12)सम्राट अशोक के पुत्र की ह्त्या मुसलमानों ने की या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 13)हर गाव हर घर में पिछड़ी जातियों को आपस में लड़ाने का काम मुसलमान करते है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 15) बौद्ध जैन सिख लिंगायत जैसे स्वतंत्र धर्मो को ब्राह्मण धर्म (हिन्दू धर्म) की शाखा कहकर प्रचारित कर उनका स्वतंत्र अस्तित्व मुसलमान ख़त्म कर रहे है की ब्राह्मण ?
सवाल तो हजारो है पर आज बस इतना ही ।
मुसलमानों ने हमारे लिए क्या किया इसकी भी जानकारी आपको देता हूँ ,
भारतीय इतिहास की कुछ शानदार घटनाये  :---
.(1) महात्मा ज्योतिबा फूले को अपना स्कूल बनाने के लिये जमीन उस्मान शेख नाम के एक मुसलमान ने दी थी ।
.(2) उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने सावित्री बाई फूले का साथ देकर उनके स्कूल में  पढा़ने का काम किया था ।
.(3) बाबासाहेब आंबेडकर  ने जब चावदार तालाब का आंदोलन चलाया और सभा करने के लिये बाबासाहेब को कोई हिन्दु जगह नहीं दे रहा था ।
तब  मुसलमान भाइयों ने आगे आकर अपनी जगह दी थी और बाबासाहेब से कहा था कि  " आप हमारी जगह मे अपनी सभा कर सकते हो "
.(4) गोलमेज परिषद मे जब गांधी जी ने बाबासाहेब का विरोध किया था और रात के बारह बजे गांधी जी ने मुसलमानों को बुलाकर कहा था कि आप बाबासाहेब का विरोध करो तो मैं आपकी सभी मांगे पूरी करुंगा ।
तब मुसलमान भाई आगार खांन साहब ने गांधी जी को मना कर दिया था और कहा था कि हम बाबासाहेब का विरोध किसी भी हाल मे नहीं करेंगे ।
.(5) मौलाना हसरत मोहानी ने बाबा साहब को रमजा़न के पवित्र माह में अपने घर रोजा़ इफ्तार की दावत दी थी ।
जबकि पंडित मदनमोहन मालवीय ने तो बाबा साहब को एक गिलास पानी तक नहीं दिया था ।
.(6) जब सारे हिन्दुओं (गांधी और नेहरू) ने मिलकर बाबासाहेब के लिये संविधान सभा के सारे दरवाजे और खिड़किया भी बंध कर दी थीं ।
तब पश्छिम बंगाल के मुसलमानों व चांडालों ने बाबासाहेब को वोट देकर चुनाव जिताकर संविधान सभा मे  भेजा था ।
.इसीलिए SC, ST और OBC समाज के लोगों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि मुस्लिम नेताओं ने  बाबा साहेब आंबेडकर का अक्सर साथ दिया था ।
जबकि गांधी और तिलक हमेशा ही बाबा साहेब आंबेडकर के रास्ते में मुश्किलें पैदा करते रहे थे ।
अभी भी SC, ST और OBC के आरक्षण के खिलाफ संघी ही आंदोलन चलाते हैं, मुस्लिम नही ।


दोस्तों अब वक्त आ गया मनुवादियों को इनकी ही भाषा में जबाब देने  का
मनुवादियों से टकराओ
हिन्दू मुस्लिम एकता बनाओ
sc/st/obc होश में आओ

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Saturday 19 August 2017

अंधश्रद्धा से परिपूर्ण मानसिक व धार्मिक गुलाम


कुछ दिन पहले एक धार्मिक प्राणी, हमारे पास रात गुज़ारने आया, वह थोड़ा बीमार था..
लेकिन धार्मिक स्कूल में पढ़ा था तो दिमाग़ी तौर पे बहुत बीमार था.
मैं रात को दूसरे लड़कों को जीव विज्ञान के बारे में कुछ बता रहा था,
धार्मिक प्राणी बोला, "ये सब झूठ है, साइंस की बातों के पीछे लगकर ज़िंदगी बर्बाद मत करो, साइंस-वाइंस कुछ नहीं होती "

मैंने उसकी दवा उठाकर अपनी जेब में डाली,  उसका मोबाइल ऑफ़ करके अपनी जेब में डाला.. और रूम की लाइट और पंखा बंद कर दिया.
धार्मिक प्राणी बोला, "ये क्या कर रहे हैं ?"
मैंने कहा, "ये दवाई, मोबाइल, पंखा, बल्ब ये सब साइंस के आविष्कार हैं.. अब अंधेरे में बैठकर मच्छर मार और बोल कि साइंस कुछ नहीं होती "
धार्मिक प्राणी खिसयानी हंसी हंसने लगा.
मैंने लाइट ऑन की और उससे कहा, "साइंस से जुड़ी हर चीज़ का सिर्फ़ दस दिन त्याग करके दिखा दे, उसके बाद बोलना कि साइंस कुछ नहीं होती "
वह प्राणी बिना कुछ बोले चुपचाप सो गया.
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ऐसे धार्मिक प्राणियों की कमी नहीं है, जो साइंस की हर चीज़ इस्तेमाल करते हैं और साइंस के विरुद्ध भी बोलते हैं.
साइंस के जिन अविष्कारों ने हमारे जीवन और दुनिया को बेहतर बनाया है, वे सब अविष्कार उन्होंने किये, जिन्होंने धार्मिक कर्मकांडों में समय बर्बाद नहीं किया.

आज कोई भी धार्मिक प्राणी साइंस से संबंधित चीज़ों के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता, लेकिन ये एहसान फ़रामोश साइंसदानों का एहसान नहीं मानते.. ये उस काल्पनिक शक्ति का एहसान मानते हैं, जिसने मानव के विकास में बाधा डाली है.. जिसने मानवता को टुकड़ों में बांटा है.

साइंसदान, अक्सर नास्तिक होते हैं... लेकिन जाहिल प्राणी कहेंगें," साइंसदानों को अक्ल तो हमारे God ने ही दी है"
लेकिन ऐसे मूर्ख इतना नहीं सोचते कि उनके God ने सारी अक्ल नास्तिकों को क्यों दे दी, धार्मिक प्राणियों को मन्दबुद्धि क्यों बनाया ?

पिछले 150 साल में, जिन अविष्कारों ने दुनिया बदल दी, वे ज़्यादातर नास्तिकों ने किये या उन आस्तिकों ने किये जो पूजा-पाठ, इबादत नहीं करते थे.

अंधविश्वास और कट्टरता से भरे धर्म वालों ने ऐसा कोई अविष्कार नहीं किया, जिससे दुनिया का कुछ भला होता.

इन्होंने अलग किस्म के आविष्कार किये, ऊपरवाला ख़ुश कैसे होता है ? .. ऊपरवाला नाराज़ क्यों होता है ?..स्वर्ग में कैसे जायें ? ..नरक से कैसे बचें ? स्वर्ग में क्या-क्या मिलेगा ?.. नरक में क्या-क्या सज़ा है ?..हलाल क्या है, हराम क्या है ?..बुरे ग्रहों को कैसे टालें ? .. मुरादें कैसे पूरी होती है ?.. पाप कैसे धुलते हैं ?.. ऊपरवाला किस्मत लिखता है.. वो सब देखता है.. वो हमारे पाप-पुण्य का हिसाब लिखता है.. जीवन-मरण उसके हाथ में है.. उसकी मर्ज़ी बगैर पत्ता नहीं हिलता.. ऊपरवाला खाने को देता है.. वो तारीफ़ का भूखा है.. वो पैसे लेकर काम करता है..
पित्तरों की तृप्त कैसे करें ? मंत्रों द्वारा संकट निवारण.. हज़ारों किस्म के शुभ-अशुभ.. हज़ारों किस्म के शगुन-अपशगुन.. धागे-ताबीज़.. भूत-प्रेत.. पुनर्जन्म.. टोने-टोटके.. राहु-केतु.. शनि ग्रह.. ज्योतिष.. वास्तु-शास्त्र...पंचक. मोक्ष.. हस्तरेखा..मस्तक रेखा..मुठकरणी.. वशीकरण.. जन्मकुंडली..काला जादू.. तंत्र-मन्त्र-यंत्र.. झाड़फूंक.. वगैरह.. वगैरह..
इस किस्म के इनके हज़ारों अविष्कार हैं..
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इन्सान को उसके विकसित दिमाग़ ने ही इन्सान बनाया है, नहीं तो वह चिंपैंजी की नस्ल का एक जीव ही है,
जो इन्सान अपना दिमाग़ प्रयोग नहीं करते, वे इन्सान जैसे दिखने वाले जीव होते हैं.. वे इन्सान नहीं होते..

अपने दिमाग़ का बेहतर इस्तेमाल कीजिये..अंदर जो अंधविश्वासों का कचरा भरा है, उसको जला दीजिये.. अंधेरा मिट जायेगा.. आपके अंदर रौशनी हो जायेगी...
पहले खुद जागो फिर दूसरों को जगाओ अन्धविश्वास को दूर भगाओ


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Friday 18 August 2017

हिन्दू धर्म की असलियत


*जो Sc St Obc अपने आपको हिन्दू समझते है वे ध्यान दे ।*

एक मंदिर में बिना नहाए भी जा सकता है दूसरा नहा-धोकर भी मंदिर में नहीं घुस सकता,
तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?
एक का पाँव पूजने का और दूसरे की पीठ पूजने का ग्रंथ आदेश देते हैं,
तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

कोई आरक्षण वाला है कोई आरक्षण वाला नहीं है,
 तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

एक आरक्षण से सहमत है दूसरा आरक्षण का विरोधी है,
तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

एक कायम उच्च है और एक कायम निम्न है,
 तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

एक लगातार सत्ता में रहता है दूसरा लगातार सत्ता से बाहर है,
 तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

एक सभी संवैधानिक पदों पर है दूसरा वैधानिक हक से भी वंचित है ,
तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

*हिन्दू धर्म है या सत्ता पाने का एक राजनीतिक षड्यंत्र है ?*

हिन्दू होकर भी हिन्दू, हिन्दू को अपनी बेटी नहीं देता
है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू को अपनी थाली में रोटी
नहीं देता है ।
हिन्दू होकर भी हिन्दू, हिन्दू को मान नहीं देता,
सम्मान नहीं देता,
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के ही अधिकार छीन लेता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू गरीबों का पेट काट लेता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के बच्चों से स्कूल-कालेजों में
भेदभाव करता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू को ही शासन-सत्ता में आगे
बढ़ते नहीं देखना चाहता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के ही बाल-बच्चो का गला
काट देता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू की काबिलियत पर ऊँगली
उठाता है ।
हिन्दू होकर ही हिन्दू, हिन्दू को एक समान अपने जैसा
इंसान होने का दर्जा नहीं देता है अपने को उच दूसरे ओर नीच समझता है ।
ये कैसा हिन्दू है और कैसा इसका हिन्दू धर्म है❓

*ये धर्म नहीं, स्वार्थ का पुलिन्दा है, सिर्फ जातियों का एक झुंड है और बहुजनों को गुलाम बनाए रखने की साजिश है ।*

*हम हिन्दू ना थे , ना है , हम सिर्फ एक षड्यंत्र के शिकार है।*
✒जब तक तुम हिन्दू रहोगे तुम्हारा स्थान सबसे नीचा रहेगा।
✒ तुम हिन्दू कभी नहीं थे, तुम आज भी हिन्दू नहीं हो।
✒ तुम हिन्दू धर्म के गुलाम हो।
✒ तुम्हें धर्म का भी गुलाम बना लिया गया है।
✒ हिन्दू धर्म छोड़ना धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि गुलामी की जंजीरे तोड़ना है।
जाति के अधार पर किसी को ऊँचा मानना पाप है और नीचा मानना महापाप।
✒ हिन्दू धर्म की आत्मा वर्ण जाती और ब्रह्मण हितेषी कर्मकांडो मैं है।
✒ वर्ण और जाति के बिना हिन्दू धर्म की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।
✒ हिन्दू धर्म वर्णों का है तुम किसी भी वर्ण में नहीं आते हो, जबरदस्ती सबसे नीचे वर्ण में रखा गया है।
✒ हिन्दू धर्म के कर्मकांडों को तुम्हे नहीं करने दिया गया और तुम नहीं कर सकते हो।
✒ हिन्दु धर्म के भगवान उनके अवतार और उनके देवी देवता ना तो तुम्हारे हैं और न तुम उनके हो।
✒ इसलिए वे तुम्हारे साये से भी परहेज करते आये हैं और आज भी कर रहे हैं।
✒ कुत्ते बिल्ली की पेशाब से उन्हें कोई परहेज नहीं है परन्तु तुम्हारे द्वारा दिए गए गंगा जल से अपवित्र
हो जाते हैं।
✒ उनकी पुनः शुद्धि गाय के मल-मूत्र से होती है।
✒याद रखो हिन्दू धर्म के देवी देवता ही तुम्हारे पूर्वजों के हत्यारे हैं।
✒धर्म मनुष्य के लिए है मनुष्य धर्म के लिए नहीं और जो धर्म तुम्हें इन्सान नही समझता वह धर्म नहीं अधर्म का बोझ है।
✒जहाँ ऊँच और नीच की व्यवस्था है, वह धर्म नही, गुलाम बनाये रखने की साजिश है।
✒ हिन्दू धर्म मे कर्म नहीं जाति प्रधान है।

*✍डॉ.भीमराव अम्बेडकर*




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🙏

गन्दी रामायण


संविधान के अनुच्छेद 45 में 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त करने की बात लिखी गयी है।
लेकिन तुलसी की रामायण, इसका विरोध करने की वकालत करती है।

1- *अधम जाति में विद्या पाए,*
    *भयहु यथाअहि दूध पिलाए।*

अर्थात जिस प्रकार से सांप को दूध पिलाने से वह और विषैला (जहरीला) हो जाता है, वैसे ही शूद्रों (नीच जाति ) को शिक्षा देने से वे और खतरनाक हो जाते हैं।

संविधान जाति और लिंग के आधार पर भेद करने की मनाही करता है तथा दंड का प्रावधान देता है।
लेकिन तुलसी की रामायण (राम चरित मानस) जाति के आधार पर ऊंच नीच मानने की वकालत करती है।

देखें : पेज 986, दोहा 99 (3), उ. का.
2- *जे वर्णाधम तेली कुम्हारा,*
   *स्वपच किरात कौल कलवारा।*

अर्थात तेली, कुम्हार, सफाई कर्मचारी,आदिवासी, कौल, कलवार आदि अत्यंत नीच वर्ण के लोग हैं।

यह संविधान की धारा 14, 15 का उल्लंघन है। संविधान सब की बराबरी की बात करता है।

तथा तुलसी की रामायण जाति के आधार पर *ऊंच-नीच* की बात करती है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है।

देखें : पेज 1029, दोहा 129 छंद (1), उत्तर कांड

3- *अभीर (अहीर) यवन किरात*
*खलस्वपचादि अति अधरूप जे।*
अर्थात अहीर (यादव), यवन (बाहर से आये हुए लोग जैसे इसाई और मुसलमान आदि) आदिवासी, दुष्ट, सफाई कर्मचारी आदिअत्यंत पापी हैं, नीच हैं। तुलसी दास कृत रामायण
(रामचरितमानस) में तुलसी ने छुआछूत की वकालत की है, जबकि यह कानूनन अपराध है।

देखें: पेज 338, दोहा 12(2)अयोध्या कांड।

4-कपटी कायर कुमति कुजाती,        लोक,वेदबाहर सब भांति।
तुलसी ने रामायण में मंथरा नामक दासी(आया) को नीच जाति वाली कहकर अपमानित किया जो संविधान का खुला उल्लंघन है।

देखें : पेज 338, दोहा 12(2) अ. का.

5- *लोक वेद सबही विधि नीचा,*
   *जासु छांटछुई लेईह सींचा।*
केवट (निषाद, मल्लाह) समाज, वेद शास्त्र दोनों से नीच है, अगर उसकी छाया भी छू जाए तो नहाना चाहिए।

तुलसी ने केवट को कुजात कहा है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है। देखें :
पेज 498 दोहा 195 (1), अ.का.

6- *करई विचार कुबुद्धि कुजाती,*
    *होहिअकाज कवन विधि राती।*
अर्थात वह दुर्बुद्धि नीच जाति वाली विचार करने लगी है कि किस प्रकार रात ही रात में यह काम बिगड़ जाए।

7- *काने, खोरे, कुबड़ें, कुटिल, कूचाली, कुमतिजानतिय विशेष पुनि चेरी कहि, भरतु मातुमुस्कान।*
भारत की माता कैकई से तुलसी ने physically और mentally challenged लोगों के साथ-साथ स्त्री और खासकर नौकरानी को नीच और धोखेबाज कहलवाया है,‘कानों, लंगड़ों, और कुबड़ों को नीच और धोखेबाज जानना चाहिए, उन में स्त्री और खास कर नौकरानी को… इतना कह कर भरत की माता मुस्कराने लगी। ये संविधान का उल्लंघन है।
देखें : पेज 339,दोहा 14, अ. का.
8--तुलसी ने निषाद के मुंह से उसकी जाति को चोर, पापी, नीच कहलवाया है।
*हम जड़ जीव, जीव धन खाती,* *कुटिल कुचली कुमति कुजाती,*
*यह हमार अति बाद सेवकाई,*
*लेही न बासन,बासन चोराई।*
अर्थात हमारी तो यही बड़ी सेवा है कि हम आपके कपड़े और बर्तन नहीं चुरा लेते (यानि हम तथा हमारी पूरी जाति चोर है, हम लोग जड़ जीव हैं, जीवों की हिंसा करने वाले हैं)।
जब संविधान सबको बराबर का हक देता है, तो रामायण को गैरबराबरी एवं जाति के आधार पर ऊंच-नीच फैलाने वाली व्यवस्था के कारण उसे तुरंत जब्त कर लेना चाहिए, नहीं तो इतने सालों से जो रामायण समाज को भ्रष्ट करती चली आ रही है। इसकी पराकाष्ठा अत्यंत भयानक हो सकती है। यह व्यवस्था समाज में विकृत मानसिकता के लोग उत्पन्न कर रहे है तथा देश को अराजकता की तरफ ले जा रही है। देश के कर्णधार, सामाजिक चिंतकों,विशेष कर युवा वर्ग को तुरंत इसका संज्ञान लेकर न्यायोचित कदम उठाना चाहिए, नहीं तो मनुवादी संविधान को न मानकर अराजकता की स्थिति पैदा कर सकते हैं। जैसा कि बाबरी मस्जिद गिराकर, सिख नरसंहार करवा कर, ईसाइयों और मुसलमानों का कत्लेआम (ग्राहम स्टेंस की हत्या तथा गुजरात दंगा) कर मानवता को तार-तार पहले ही कर चुके हैं। साथ ही सत्ता का दुरुपयोग कर ये दुबारा देश को गुलामी में डाल सकते हैं, और गृह युद्ध छेड़कर देश को खंड खंड करवा सकते हैं।

*जागो*
 *शूद्र(OBC),अतिशूद्र(SC),अवर्ण(ST)*

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Tuesday 15 August 2017

एक गलत फैसला "प्रवाह" के साथ बहने का

एक बार एक नदी में हाथी की लाश बही जा रही थी।
एक कौए ने लाश देखी, तो प्रसन्न हो उठा, तुरंत उस पर आ बैठा।
यथेष्ट मांस खाया। नदी का जल पिया।
उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली।
वह सोचने लगा, अहा! यह तो अत्यंत सुंदर यान है, यहां भोजन और जल की भी कमी नहीं। फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरूं?
कौआ नदी के साथ बहने वाली उस लाश के ऊपर कई दिनों तक रमता रहा।
भूख लगने पर वह लाश को नोचकर खा लेता, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता।
अगाध जलराशि, उसका तेज प्रवाह, किनारे पर दूर-दूर तक फैले प्रकृति के मनोहरी दृश्य-इन्हें देख-देखकर वह भाव विभोर होता रहा।
नदी एक दिन आखिर महासागर में मिली।
वह मुदित थी कि उसे अपना गंतव्य प्राप्त हुआ।
सागर से मिलना ही उसका चरम लक्ष्य था, किंतु उस दिन लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई।
चार दिन की मौज-मस्ती ने उसे ऐसी जगह ला पटका था, जहां उसके लिए न भोजन था, न पेयजल और न ही कोई आश्रय। सब ओर सीमाहीन अनंत खारी जल-राशि तरंगायित हो रही थी।
कौआ थका-हारा और भूखा-प्यासा कुछ दिन तक तो चारों दिशाओं में पंख फटकारता रहा, अपनी छिछली और टेढ़ी-मेढ़ी उड़ानों से झूठा रौब फैलाता रहा, किंतु महासागर का ओर-छोर उसे कहीं नजर नहीं आया। आखिरकार थककर, दुख से कातर होकर वह सागर की उन्हीं गगनचुंबी लहरों में गिर गया। एक विशाल मगरमच्छ उसे निगल गया।
शारीरिक सुख में लिप्त उन सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भी गति उसी कौए की तरह होने वाली है, जो  आरक्षण का लाभ लेकर बाबा साहेब को भूल गए है तथा अपने को हिन्दु की नानी समझ रहे हैं बिना पूजा पाठ किये पानी नही पियेंगे। सभी हिन्दु देवी देवताओं जिसे पुजने हेतु बाबा साहेब ने मना किया था उसकी पूजा   करेगे। चारो धाम की यात्रा करेगे। किसी गरीब के बच्चे की पढ़ाई लिखाई  शादी व्याह में  कोई मदद नही करेंगे।
ऐसे लोगो की आने वाली पीढ़ी की दुर्गति होने वाली है फिर भी इन्हें समझ मे नही आ रहा है ।

जीत किसके लिए, हार किसके लिए
ज़िंदगीभर ये तकरार किसके लिए..
जो भी पाया है आरक्षण में वो चला जायेगा एक दिन
फिर ये इतना अहंकार किसके लिए।
आओ इन 24 घंटो में से एक घंटा समाज के लिए दे।बहुजनो के अच्छे भविष्य के लिए...जय भीम जय भारत नमो बुद्धाय

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नास्तिक

एक रोज एक नास्तिक के सपने में भगवान आया और नास्तिक से  कहा माँग जो माँगना है, मैं तुझको देना चाहता हूँ ।
 नास्तिक ने कहा तू मुझको कुछ नही दे सकता ।
उसने कहा क्यों ? दुनिया तो मुझसे माँगती है ।
 नास्तिक ने कहा  दुनिया तुझसे माँगती है तो फिर तू दुनिया से क्यों माँगता है ?
भगवान ने कहा मैंने किसी से कब माँगा है ?
नास्तिक ने कहा किसी से तू भोजन माँगता है, किसी से दूध माँगता है । किसी से घी माँगता है किसी से तेल माँगता है । किसी से वस्त्र माँगता है तो किसी से आभूषण माँगता है ।
उसने कहा ये कौन कहता है कि मैं माँगता हूँ ? क्या किसी ने कभी मुझको माँगते हुए देखा है ?
नास्तिक ने  कहा ऐसा तेरे भक्त ही कहते हैं । तेरे पुजारी कहते हैं । तेरे एजेंट कहते हैं ।
उसने कहा मैंने तो उनसे नहीं कहा ।
नास्तिक ने कहा अगर तूने नही कहा तो फिर तू उनको रोकता क्यों नही ? क्या तू उनको रोक सकता है ?
अब भगवान चुप और सन्नाटा ।
नास्तिक ने कहा तू नही रोक सकता क्योंकि तू ही उनकी उपज है । उन्होंने तुझको बनाया है । लोगो के मन में तेरा भय पैदा कर । तेरी उत्पत्ति ही भय से हुई है । जिस दिन भय ख़त्म हो जायेगा । तू भी उसी दिन ख़त्म हो जायेगा । नास्तिक ने कहा तू किसी को क्या दे सकता है ? तू तो खुद कर्ज में डूबा है ।
उसने कहा मैंने किससे कर्ज लिया है ?
नास्तिक ने कहा जिन्होंने तुझको दिया है, क्या तूने उनको कभी वापिस दिया है ? नहीं ना ? तो फिर तू उनका कर्जदार कैसे नही है ? जो लेकर नही देता उसको बेईमान कहते हैं, ठग और धोखेबाज कहते हैं ।
और भगवान रेत के ढेर की तरह भरभरा कर गिर पड़ा । अब वहाँ कुछ शेष नही था क्योंकि भगवान का डर ख़त्म हो चुका था |

अंधविस्वास से नाता तोड़ो और ज्ञान विज्ञान से नाता जोड़ो।.

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जागो OBC जागो




1977 मेँ जनता पार्टी की सरकार बनी जिसमे*मोरारजी  ब्राह्मण थे* जिनको _जयप्रकाश नारायण_ द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिऐ नामांकित किया था।
चुनाव मेँ जाते समय *जनता पार्टी* ने अभिवचन दिया था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वे *काका कालेलकर कमीशन* लागू करेंगे। जब उनकी सरकार बनी तो *OBC का एक प्रतिनिधिमंडल* मोरारजी को मिला और *काका कालेलकर कमीशन* लागू करने के लिऐ मांग की मगर _मोरारजी_ ने कहा कि _*कालेलकर कमीशन*_ की रिपोर्ट पुरानी हो चुकी है, इसलिए अब बदली हुई परिस्थिति मेँ नयी रिपोर्ट की आवश्यकता है। *यह एक शातिर बाह्मण की OBC को ठगने की एक चाल थी*।
प्रतिनिधिमडंल इस पर सहमत हो गया और *B.P. Mandal* जो बिहार के यादव थे, उनकी अध्यक्षता मेँ *मंडल कमीशन* बनाया गया।

बी पी मंडल और उनके कमीशन ने पूरे देश में घूम-घूमकर 3743 जातियोँ को OBC के तौर पर पहचान किया जो 1931 की जाति आधारित गिनती के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 52% थे। मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट मोरारजी सरकार को सौपते ही, पूरे देश मेँ बवाल खङा हो गया। जनसंघ के 98 MPs के समर्थन से बनी जनता पार्टी की सरकार के लिए मुश्किल खङी हो गयी।
उधर *अटल बिहारी बाजपेयी* के नेतृत्व मेँ जनसंघ के MPs ने दबाव बनाया कि अगर मंडल कमीशन लागू करने की कोशिश की गयी तो वे सरकार गिरा देंगे। दूसरी तरफ OBC के नेताओँ ने दबाव बनाया ।
*फलस्वरूप अटल बिहारी बसजपेयी ने मोरारजी की सहमति से जनता पार्टी की सरकार गिरा दी।*
इसी दौरान भारत की राजनीति मेँ एक Silent revolution की भूमिका तैयार हो रही थी *जिसका नेतृत्व आधुनिक भारत के महानतम् राजनीतिज्ञ कांशीराम जी कर रहे थे*।
कांशीराम साहब और डी के खापर्डे ने 6 दिसंबर 1978 में अपनी बौद्धिक बैँक *बामसेफ* की स्थापना की जिसके माध्यम से पूरे देश मेँ OBC को मंडल कमीशन पर जागरण का कार्यक्रम चलाया। *कांशीराम जी के जागरण अभियान के फलस्वरूप देश के OBC को मालुम पड़ा कि उनकी संख्या देश मेँ 52% मगर शासन प्रशासन में उनकी संख्या मात्र 2% है।* *_जबकि 15% तथाकथित सवर्ण प्रशासन में  80% है। इस प्रकार सारे आंकङे मण्डल की रिपोर्ट मेँ थे जिसको जनता के बीच ले जाने का काम कांशीराम जी ने किया।_*
अब OBC जागृत हो रहा था। उधर अटल बिहारी ने जनसंघ समाप्त करके BJP बना दी। 1980 के चुनाव मेँ संघ ने इंदिरागांधी का समर्थन किया और इंन्दिरा जो 3 महीने पहले स्वयं हार गयी थी 370 सीट जीतकर आयी।

*इसी दौरान गुजरात में आरक्षण के विरोध में प्रचंड आन्दोलन चला*।
 *_मजे की बात यह थी कि इस आन्दोलन में बङी संख्या OBC स्वयँ सहभागी था_*, *क्योँकि ब्राह्मण-बनिया "मीडीया" ने प्रचार किया कि जो आरक्षण SC,ST को पहले से मिल रहा है वह बढ़ने वाला है।*
गुजरात में अनु. जाति के लोगों के घर जलाये गये। *नरेन्द्र मोदी* इसी आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता थे।

कांशीराम जी अपने मिशन को दिन-दूनी रात-चौगुनी गति से बढा रहे थे।
ब्राह्मण अपनी रणनीति बनाते पर
उनकी हर रणनीति की काट कांशीराम जी के पास थी। *कांशीराम ने वर्ष 1981 में DS4 ( DSSSS) नाम की "आन्दोलन करने वाली विंग" को बनाया।* जिसका नारा था *'ब्राह्मण बनिया ठाकुर छोङ बाकी सब हैं DS4!'*
DS4 के माध्यम से ही कांशीराम जी ने एक और प्रसिद्ध नारा दिया *"मंडल कमीशन लागु करो वरना सिँहासन खाली करो।'* इस प्रकार के नारो से पूरा भारत गूँजने लगा।

1981 में ही *मान्यवर कांशीराम* ने *हरियाणा का विधानसभा* चुनाव लङा, 1982 मेँ ही उन्होने *जम्मू काश्मीर का विधान सभा* का चुनाव लङा।
*अब कांशीराम जी की लोकप्रियता अत्यधिक बढ गयी।*
 *_ब्राह्मण-बनिया "मीडिया"_* ने उनको बदनाम करना शुरू कर दिया। उनकी बढती लोकप्रियता से इंन्दिरा गांधी घबरा गयीं।
इंन्दिरा को लगा कि अभी-अभी *जेपी के जिन्न*से पीछा छूटा  कि *अब ये कांशीराम तैयार हो गये।* इंन्दिरा जानती थी कांशीराम जी का उभार जेपी से कहीँ ज्यादा बङा खतरा ब्राह्मणोँ के लिये था। उसने संघ के साथ मिलने की योजना बनाई।
अशोक सिंघल की एकता यात्रा जब दिल्ली के सीमा पर पहुँची, तब इंन्दिरा गांधी स्वयं माला लेकर उनका स्वागत करने पहुंची।

*इस दौरान भारत में एक और बङी घटना घटी।*
भिंडरावाला जो खालिस्तान आंदोलन का नेता था, जिसको कांग्रेस ने अकाल तख्त का विरोध करने के लिए खङा किया था, उसने स्वर्णमंदिर पर कब्जा कर लिया।
RSS और कांग्रेस ने योजना बनाई अब मण्डल कमीशन आन्दोलन को भटकाने के लिऐ *हिन्दुस्थान vs खालिस्थान* का मामला खङा किया जाय।  *इंन्दिरा गांधी आर्मी प्रमुख जनरल सिन्हा को हटा दिया और एक साऊथ के ब्राह्मण को आर्मी प्रमुख बनाया।* जनरल सिन्हा ने इस्तीफा दे दिया।
आर्मी में भूचाल आ गया। नये आर्मी प्रमुख इंन्दिरा गांधी के कहने पर OPERATION BLUE STAR
की योजना बनाई और स्वर्ण मंदिर के अन्दर टैँक घुसा दिया।
पूरी आर्मी हिल गयी। पूरे सिक्ख समुदाय ने इसे अपना अपमान समझा और 31 Oct. 1984 को इंन्दिरा गांधी को उनके दो Personal guards बेअन्तसिह और सतवन्त सिँह, जो दोनो *अनुसुचित जाति* के थे, ने इंन्दिरा गांधी को गोलियों से छलनी कर दिया।
*_माओ_ अपनी किताब _'ON CONTRADICTION'_ में लिखते हैं कि शासक वर्ग किसी एक षडयंत्र को छुपाने के लिऐ दुसरा षडयंत्र करता है,  पर वह नहीँ जानता कि इससे वह अपने स्वयँ के लिए कोई और संकट खङा कर देता है।'* _माओ_की यह बात भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य मेँ सटीक साबित होती है।
*मंडल कमीशन को दबाने वाले षडयंत्र का बदला शासक वर्ग ने 'इंन्दिरा गांधी' की जान देकर चुकाया।*
इंन्दिरा गांधी की हत्या के तुरन्त बाद राजीव गांधी को नया प्रधानमंत्री मनोनीत कर दिया गया। जो आदमी 3 साल पहले पायलटी छोङकर आया था, वो देश का *'मुगले आजम'* बन गया। *इंन्दिरा गांधी की अचानक हत्या से सारे देश मेँ सिक्खोँ के विरूद्ध माहौल तैयार किया गया। दंगे हुऐ। अकेले दिल्ली में 3000 सिक्खो का कत्लेआम हुआ जिसमें तत्कालीन मंत्री भी थे।* उस दौरान *राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिँह* का फोन तक *प्रधनमंत्री राजीव गांधी*ने रिसीव नहीँ किये। उधर कांशीराम जी अपना अभियान
जारी रखे हुऐ थे। *उन्होनेँ अपनी राजनीतिक पार्टी BSP की स्थापना की* और सारे देश में साईकिल यात्रा निकाली। *कांशीराम जी ने एक नया नारा दिया _"जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी ऊतनी हिस्सेदारी।"_*

*कांशीराम जी मंडल कमीशन का मुद्दा बङी जोर शोर से प्रचारित किया, जिससे उत्तर भारत के पिछङे वर्ग मेँ एक नयी तरह की सामाजिक, राजनीतिक चेतना जागृत हुई।*
*_इसी जागृति का परिणाम था कि पिछङे वर्ग नया नेतृत्व जैसे कर्पुरी ठाकुर, लालु, मुलायम का उभार हुआ।_*
अब कांशीराम शोषित वंचित समाज के सबसे बङे नेता बनकर उभरे। वही 1984 का चुनाव हुआ पर इस चुनाव कांशीराम ने सक्रियता नहीँ दिखाई ।पर राजीव गांधी को सहानुभुति लहर का इतना फायदा हुआ कि राजीव गांधी 413 MPs चुनवा कर लाये। जो राजीव जी के नाना ना कर सके वह उन्होने कर दिखाया।
*सरकार बनने के बाद फिर मण्डल का जिन्न जाग गया।* OBC के MPs संसद मेँ हंगामे शुरू कर दिये । शासक वर्ग फिर नयी व्युह रचना बनाने की सोची।

*अब कांशीराम जी के अभियानो के कारण OBC जागृत हो चुका था।* अब शासक वर्ग के लिऐ मंडल कमीशन का विरोध करना संभव नहीँ था।
*2000 साल के इतिहास मेँ शायद ब्राह्मणोँ ने पहली बार कांशीराम जी के सामने असहाय महसूस किया।*
कोई भी राजनीतिक उदेश्य इन तीन साधनोँ से प्राप्त किया जा सकता है वह है-
*1) शक्ति संगठन की,*
*2) समर्थन जनता का* और
*3) दांवपेच नेता का।*

कांशीराम जी के पास तीनो कौशल थे और दांवपेच के मामले मेँ वे ब्राह्मणोँ से 21 थे। अब यह समय था जब कांग्रेस और संघ की सम्पूर्ण राजनीतिक केवल कांशीराम जी पर ही केन्द्रित हो गया।
1984 के चुनावोँ में बनवारी लाल पुरोहित ने मध्यस्थता कर राजीव गांधी और संघ का समझौता करवाया एवं इस चुनाव मेँ संघ ने राजीव गांधी का समर्थन किया। *गुप्त समझौता यह था कि राजीव गांधी राम मंदिर आन्दोलन का समर्थन करेगेँ और हम मिलकर रामभक्त OBC को मुर्ख बनाते है।*
राजीव गांधी ने ही बाबरी मस्जिद के ताले खुलवाये, उसके अन्दर राम के बाल्यकाल की मूर्ति भी रखवाईं ।

*अब ब्राह्मण जानते थे अगर मण्डल कमीशन का* विरोध *करते है तो "राजनीतिक शक्ति" जायेगी, क्योकि 52% OBC के बल पर ही तो वे बार बार _देश के राजा_ बन जाते थे, और* समर्थन *करते हैं तो कार्यपालिका में जो उन्होने _स्थायी सरकार_ बना रखी थी वो छिन जाने खा खतरा था।*
विरोध करें तो खतरा, समर्थन करें तो खतरा। करें तो क्या करें?

तब कांग्रेस और संघ मिलकर OBC पर विहंगम दृष्टि डाली तो *उनको पता चला कि पूरा OBC रामभक्त है।*
उन्होँने *मंडल के आन्दोलन* को *कमंडल* की तरफ मोङने का फैसला किया। *सारे देश में राम मंदिर अभियान छेङ दिया।* बजरंग दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया जो पिछङा था।
कल्याण सिंह, रितंभरा, ऊमा भारती, गोविन्दाचार्य आदि वो मुर्ख OBC थे जिनको संघ ने सेनापति बनाया।
जिस प्रकार ये लोग हजारोँ सालो से ये पिछङो में विभीषण पैदा करते रहे इस बार भी इन्होंने ऐसा ही किया।

वहीँ दूसरी तरफ *अनियंत्रित राजीव गांधी ने खुद को अन्तर्राष्ट्रीय नेता बनाने एवं मंडल कमीशन का मुद्दा दबाने के लिऐ प्रभाकरण से समझौता किया* तथा प्रभाकरण को वादा किया कि जिस प्रकार उसकी माँ (इंदिरागांधी) ने पाकिस्तान का विभाजन कर देश-दुनिया की राजनीति में अपनी धाक पैदा की वैसे वह भी श्रीलंका का विभाजन करवाकर प्रभाकरण को तमिल राष्ट्र बनवाकर देगा।
वहीं राजीव गांधी की सरकार में वी.पी. सिंह रक्षा मंत्री थे।
*बोफोर्स रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार राजीव गांधी की सहायता से किया गया* जिसको उजागर किया गया। _यह राजीव गांधी की साख पर बट्टा था।_
वीपी सिंह इसको मुद्दा बनाकर अलग *जन मोर्चा* बनाया। अब असली घमासान था। 1989 के चुनाव की लङाई दिलकश हो चली थी। *पूरे उत्तर भारत में कांशीराम जी बहुजन समाज के नायक बनकर उभरे। उन्होने 13 जगहो पर चुनाव जीता जबकि 176 जगहोँ पर वे कांग्रेस का पत्ता साफ करने में  सफल हो गये।*
राजीव गांधी जो कल तक दिल्ली का मुगल था कांशीराम जी के कारण वह रोड मास्टर बन गया। कांग्रेस 413 से धङाम 196 पर आ गयी। वी पी सिंह के गठबनधन 144 सीटें मिली, जिसके कारण वी पी सिंह ने चुनाव में जाने की घोषणा की और कहा कि यदि उनकी सरकार बनी तो मंडल कमीशन लागू करेंगे।
चन्द्रशेखर व चौधरी देवीलाल के साथ मिलकर सरकार बनाने की योजना वी पी सिंह द्वारा बनायी गयी। चौधरी देवीलाल प्रधानमंत्री पद के सबसे बङे दावेदार थे पर योजना इस प्रकार से बनायी गयी थी कि संसदीय दल की बैठक में दल का नेता (प्रधानमंत्री) चुनने की माला चौ. देवीलाल के हाथ में दे दी जाए । चौ. देवीलाल (इस झूठे सम्मान से कि नेता चुनने का हक़ उनको दिया गया) माला वी पी के गले में डाल दिया। *इस प्रकार वी पी सिंह नये प्रधानमंत्री बने।*
प्रधानमंत्री बनते ही OBC नेताओं ने मंडल कमीशन लागू करवाने का दबाव डाला। वी पी सिँह ने बहानेबाजी की पर अन्त में निर्णय करने के लिए चौ. देवीलाल की अध्यक्षता मेँ एक कमेटी बनायी।
याद रहे कि मंडल कमीशन के चैयरमैन बी. पी. मंडल यादव थे, शायद इसीलिए मंडल कमीशन की लिस्ट में उन्होने यादवों को तो शामिल कर लिया मगर जाटों को शामिल नही किया।
चौधरी देवीलाल ने कहा कि इसमे जाटों को शामिल करो फिर लागू करो मगर ठाकुर वी पी सिँह इनकार कर दिया।

चौधरी देवीलाल नाराज होकर कांशीराम जी के पास गये और पूरी कहानी सुनाकर बोले मुझे आपका साथ चाहिये। *कांशीराम जी बोले कि 'ताऊ तुझे जनता ने "Leader" बनाया मगर ठाकुर ने  "Ladder" (सीढी) बनाया।*
तेरे साथ अत्याचार हुआ और दुनिया में जिसके साथ अत्याचार होता है कांशीराम उसका साथ देता है।' कांशीराम जी और देवीलाल ने वी पी सिंह के विरोध में एक विशाल रैली करने वाले थे। उसी दौरान शरद यादव और रामविलास पासवान ने वी पी सिंह से मुलाकात की। उन्होँने वी पी से कहा कि हमारे नेता आप नही बल्कि चौधरी देवीलाल है। अगर आप मंडल लागू कर दे तो हम आपके साथ रहेंगे अन्यथा हम भी देवीलाल और कांशीराम का साथ देंगे।
ठाकुर वी पी सिँह की कुर्सी संकट से घिर गयी। कुर्सी बचाने के डर से वी पी सिंह ने मंडल कमीशन लागू करने की घोषणा कर दी।
सारे देश मेँ बवाल खङा हो गया। *Mr. Clean से Mr. Corrupt बन चुके राजीव गांधी ने बिना पानी पिये संसद में 4 घंटे तक मंडल के विरोध में भाषण दिया।*
जो व्यक्ति 10 मिनिट तक संसद में ठीक से बोल नहीं सकता था, उसने OBC का विरोध अपनी पूरी ऊर्जा से पानी पी-पी कर किया और 4 घंटे तक बोला।
वी पी सिंह सरकार गिरा दी गयी। चुनाव घोषणा की हुयी और एम नागराज नाम के  ब्राह्मण ने उच्चतम न्यायालय में आरक्षण के विरोध में मुकदमा (केश) कर दिया ।
इधर राजीव गांधी ने जो प्रभाकरण से वादा किया था वो पूरा नही कर सके थे बल्कि UNO के दबाव मे ऊन्होँने शांति सेना श्रीलंका भेज दी थी। राजीव गांधी के कहने पर प्रभाकरण के साथी कानाशिवरामन को BOMB बनाने की ट्रेनिँग दी गयी थी। जब प्रभाकरण को लगा कि राजीव गाँधी ने धोखा किया। उसने काना शिवरामन को राजीव गांधी की हत्या कर देने का आदेश दिया और मई 1991 मे राजीव गांधी को मानव बम द्वारा ऊङा दिया गया। *एक बार फिर माओ का कथन सत्य सिद्ध हुआ।*और मंडल के भूत ने राजीव गांधी की जान ले ली।

राजीव गांधी हत्या का फायदा कांग्रेस को हुआ। कांग्रेस के 271 सांसद चुनकर आये। शिबु सोरेन व एक अन्य को खरीदकर कांग्रेस ने सरकार बनायी।  वी पी नरसिंम्हराव दक्षिण के ब्राह्मण प्रधानमंत्री बने।

दूसरी तरफ मंडल कमीशन के विरोध मे Supreme court के 31 आला ब्राह्मण वकील सुप्रीम कोर्ट पहुँच गये।
लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे, पटना से दिल्ली आये। सारे ब्राह्मण-बनिया वकीलों से मिले। कोई भी वकील पैसा लेकर भी मंडल के समर्थन में लङने के लिऐ तैयार नही था।
लालू यादव ने रामजेठमलानी से निवेदन किया मगर जेठमलानी Criminal Lawyer थे जबकि यह संविधान का मामला था, फिर भी रामजेठमलानी ने यह केस लङा। *मगर SUPREME COURT ने 4 बङे फैसले OBC के खिलाफ दिये।*
1. केवल 1800 जातियों को OBC माना।

2. 52% OBC को 52% देने की बजाय संविधान के विरोध में जाकर 27% ही आरक्षण होगा।

3. OBC को आरक्षण होगा पर प्रमोशन मेँ आरक्षण नहीँ होगा।

4. क्रीमीलेयर होगा अर्थात् *जिस OBC का INCOME 1 लाख होगा उसे आरक्षण नहीँ मिलेगा।*

इसका एक आशय यह था कि जिस OBC का लङका महाविद्यालय मेँ पढ रहा है उसे आरक्षण नहीँ मिलेगा बल्कि जो OBC गांव मेँ ढोर ढाँगर
चरा रहा है उसे आरक्षण मिलेगा।
*यह तो वही बात हो गई कि दांत वाले से चना छीन लिया और बिना दांत वाले को चना देने कि बात करता है ताकि किसी को आरक्षण का लाभ न मिले।*
ये चार बङे फैसले सुप्रीम कोर्ट के सेठ जी ऍव भट्टजी ने OBC के विरोध मेँ दिये। दुनिया की हर COURT में न्याय मिलता है जबकि भारत की SUPREME COURT ने 52% OBC के हक और अधिकारों के विरोध का फैसला दिया।
भारत के शासक वर्ग अपने हित के लिऐ सुप्रीम कोर्ट जैसी महान् न्यायिक संस्था का दुरूपयोग किया।
मंडल को रोकने के लिऐ कई हथकंडे अपनाऐ हुऐ थे जिसमें राम मंदिर आन्दोलन बहुत बङा हथकंडा था। उत्तर प्रदेश मेँ बीजेपी ने मजबूरी मेँ कल्याण सिंह जो कुर्मी थे उनको मुख्यमंत्री बनाया।
आपको बताता चलूं की कांशीराम जी के उदय के पश्चात् ब्राह्मणोँ ने लगभग हर राज्य में OBC मुख्यमंत्री बनाना शुरू किये ताकि OBC का जुङाव कांशीराम जी के साथ न हो। इसी वजह से एक कुर्मी को मुख्यमंत्री बनाया गया।

आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली। नरेन्द्र मोदी आडवाणी के हनुमान बने। *याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने मंडल विरोधी निर्णय 16 नवम्बर 1992 को दिया और शासक वर्ग ने 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गयी।* बाबरी मस्जिद गिराने मे कांग्रेस ने बीजेपी का पूरा साथ दिया। इस प्रकार सुप्रिम कोर्ट के निर्णय के बारे में OBC जागृत न हो सके, इसीलिए बाबरी मस्जिद गिराई गयी।
शासक वर्ग ने तीर मुसलमानों पर चलाया पर निशाना OBC थे। जब भी उन पर संकट आता है वे हिन्दु और मुसलमान का मामला खङा करते हैं। बाबरी मस्जीद गिराने के बाद कल्याणसिंह सरकार बर्खास्त कर दी गयी।
दूसरी तरफ कांशीराम जी UP के गांव गांव जाकर षडयंत्र का पर्दाफाश कर रहे थे। उनका मुलायम सिंह से समझौता हुआ। विधानसभा चुनाव हुए कांशीराम जी की 67 सीट एवं मुलायम सिँह को 120 सीटें मिली। बसपा के सहयोग से मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने।
*UP के OBC और SC के लोगों ने मिलकर नारा लगाया _"मिले मुलायम कांशीराम हवा मेँ ऊङ गये जय श्री राम।"_*

शासक जाति को खासकर ब्राह्मणवादी सत्ता को इस गठबन्धन से और ज्यादा डर लगने लगा।
 इंडिया टुडे ने कांशीराम भारत के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं ऐसा ब्राह्मणोँ को सतर्क करने वाला लेख लिखा। *इसके बाद शासक वर्ग अपनी राजनीतिक रणनीति में बदलाव किया। लगभग हर राज्य का मुख्यमंत्री ऊन्होनेँ शूद्र(OBC) बनाना शुरू कर दिये। साथ ही उन्होने दलीय अनुशासन को कठोरता से लागू किया ताकि निर्णय करते वक्त वे स्वतंत्र रहें।*

*1996 के चुनावों में  कांग्रेस फिर हार गयी और दो तीन अल्पमत वाली सरकारें बनी। यह गठबन्धन की सरकारें थी। इन सरकारों में सबसे महत्वपुर्ण सरकार H.D. देवेगौङा (OBC) की सरकार थी जिनके कैबिनेट में एक भी ब्राह्मण मंत्री नही था। आजाद भारत के इतिहास मे पहली बार ऐसा हुआ जब किसी प्रधानमंत्री के केबिनेट मे एक भी ब्राह्मण मंत्री नही था।* इस सरकार ने बहुत ही क्रांतिकारी फैसला लिया। वह फैसला था OBC की गिनती करने का फैसला जो मंडल का दूसरी योजना थी, क्योँकि 1931 के आंकङे बहुत पुराने हो चुके थे। OBC की गिनकी अगर होती तो देश मे OBC की सामाजिक, आर्थिक स्थिति क्या है और उसके सारे आंकङे पता चल जाते। इतना ही नही 52% OBC अपनी संख्या का उपयोग राजनीतिक ऊद्देश्य के लिऐ करता तो आने वाली सारी सरकारेँ OBC की ही बनती। शासक वर्ग के समर्थन से बनी देवेगोङा की सरकार फिर गिरा दी गयी।
शासक वर्ग जानता है कि जब तक OBC धार्मिक रूप से जागृत रहेगा तब तक हमारे जाल मेँ फँसता रहेगा जैसे 2014 मेँ फंसा। शायद जाति अधारित गिनती ओबीसी की करने का निर्णय देवेगौङा सरकार ने नहीं किया होता तो शायद उनकी सरकार नही गिरायी जाती।
ब्राह्मण अपनी सत्ता बचाने के लिये हरसंभव प्रयत्न में लगे रहे। वे जानते थे कि अगर यही हालात बने रहे थे तो ब्राह्मणों की राजनीतिक सत्ता छीन ली जायेगी।
जो लोग सोनिया को कांग्रेस का नेता नहीँ बनाना चाहते थे वे भी अब सोनिया को स्वीकार करने लगे।
कांग्रेस वर्किग कमेटी मे जब शरद पवार ने सोनिया के विदेशी होने का मुद्दा उठाया तो आर.के. धवन नामक ब्राह्मण ने थप्पङ मारा। पी ऐ संगमा, शरद पवार, राजेश पायलट, शरद पवार, सीताराम केसरी, सबको ठिकाने लगा दिया। शासक वर्ग ने गठबन्धन की राजनीति स्वीकार ली।
उधर अटल बिहारी कश्मीर पर गीत गाते गाते 1999 मे फिर प्रधानमंत्री हुऐ। अगर कारगिल नही हुआ होता तो अटल फिर शायद चुनकर आते। सरकार बनाते ही अटल बिहारी ने संविधान समीक्षा आयोग बनाने का निर्णय लिया।
*अरूण शौरी ने बाबासाहब अम्बेडकर को अपमानित करने वाली किताब 'Worship of false gods' लिखी।* इसके विरोध मेँ सभी संगठनो ने विरोध किया। विशेषकर बामसेफ के नेतृत्व मेँ 1000 कार्यक्रम सारे देश में आयोजित किये गये। अटल सरकार ने अपना फैसला वापस (पीछे) ले लिया।
 ये भी नया हथकंडा था वास्तविक मुद्दो को दबाने का। फिर 2011 में जनगणना होनी थी। मगर OBC की जनगणना नहीँ करने का फैसला किया गया। *इसलिए भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में संख्याबल के हिसाब से शासक बनने वाला ओबीसी वर्ग सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मणवादी/मनुवादी शासकों का पिछलग्गू बन कर रह गया है। वो अपना नुकसान तो कर ही रहा है, साथ में अपने दलित,आदिवासी, मुस्लीम भाई बंधुओं का भी नुकसान कर रहा है,
 जो ब्राह्मणवादी सत्ता को समाप्त करने का निरंतर प्रयत्नशील है.
OBC'S must have to read & think on it...

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Sunday 13 August 2017

हिन्दू धर्म और बुद्ध के धम्म में अंतर


*बुध्द कहते हैं- ईश्वर कहीं भी नही हैं उसे ढूढ़ने में अपना वक़्त और ऊर्जा बर्बाद मत करों ।*

   *हिन्दू धर्म और धम्म मेँ अंतर-*
 *हिन्दू धर्म में आप ईश्वर के खिलाफ नहीँ बोल सकते, धर्म ग्रंथो की अवेहलना नहीँ कर सकते, अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीँ कर सकते।*
*जबकि धम्म मेँ तो स्वयं को जाँचने परखने और अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की शिक्षा हैँ।*
*हिन्दू धर्म कहता हैँ कि तेरा भला करने तथाकथित ईश्वर जैसी कोई ताकत आयेगी।*
*जबकि धम्म कहता हैँ- अत्त दीप भवः अर्थात अपन दीपक स्वयं बनो।*
*बुध्द भी कहते हैँ:  "ना मैँ मुक्तिदाता हुँ, ना मैँ मोक्षदाता हुँ। मैँ सिर्फ मार्ग दिखाने वाला हूँ। धम्म अर्थात जीवन जीने का सर्वोतम मानवतावादी आधार ।*
*बहुत से लोग मानते होँगे कि धर्म और धम्म एक ही हैँ। उनको विश्लेषण करने की जरुरत हैँ। धर्म मेँ जन्म लेना पङता हैँ, जबकि धम्म में (शिक्षा) प्राप्त करनी पङती हैँ। जिसे कोई भी प्राप्त कर सकता हैँ।*
*बुद्ध ने अपने अनुयाइयोँ से कहा था कि धर्म में अतार्किक बातेँ हैँ। जैसे आत्मा, परमात्मा,भूत, ईश्वर, देवी-देवता आदि। जबकि धम्म वैज्ञानिक द्रष्टिकोण पर आधारित हैँ। धम्म तर्क और बुद्धि को प्राथमिकता देता है। इसलिये ईश्वर को नकारता हैँ।*
*धर्म मेँ असामनता है, भेदभाव है, ऊँच-नीच है। जबकि धम्म मेँ सब एक है। सब बराबर हैँ। कोई भेदभाव नही है। धम्म एक शिक्षा है, एक ज्ञान है, जो सबके लिये है। धर्म मेँ विभाजन है। अधिकार वर्गोँ मेँ विभाजित है। जबकि धम्म मेँ वर्गहीनता है। अधिकार और ज्ञान सभी के लिये है।*
*धर्म मेँ कोई ब्रम्हा को सृष्टि का रचयिता बताता है, तो कोई स्वयं को ईश्वर का दूत कहता है। जबकि धम्म की शिक्षा देने वाले ने खुद को ईश्वर का दूत ना बताकर खुद को एक सच्चा मार्ग दिखाने वाला मनुष्य बताया।*
*तथागत गौतम बुध्द, ’बुध्द’ का अर्थ बताते हुए कहते हैँ: "बुध्द" एक’अवस्था अथवा स्थिति का नाम हैँ। एक ऐसी स्थिति जो मानवीय ज्ञान की चरम अवस्था है। जब मनुष्य अपने तर्क और ज्ञान से एक दुर्लभ अवस्था (बोधिसत्व) को प्राप्त कर लेता है वो ‘बुध्द’ कहलाता है।*
*बाबा साहब डॉ. आम्बेडकर को भी बोधिसत्व का दर्जा दिया गया हैँ, जो कार्य तथागत गौतम बुध्द ने अपने ज्ञान की बदौलत किया, वैसा ही कार्य डॉ. आम्बेडकर ने अपने ज्ञान की बदौलत किया। अतः वो भी ‘बोधिसत्व’ हुए।*
*धर्मोँ मेँ कानून की कठोरता है। जबकि धम्म को मानने या ना मानने मेँ आप पूर्णतया स्वतंन्त्र है।*
*धम्म आप पर कोई कानून नहीँ थोपता। धर्म मेँ सब कुछ फिक्स होता है। जैसे: जो धर्म ग्रंथों मेँ लिखा है, वही सत्य है। उसका पालन किसी भी कीमत पर आवश्यक है। जबकि धम्म परिस्थितियों के आधार पर मानव हित के लिये परिवर्तन को मानता है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखता हैँ।*
*धम्म ‘ज्ञान’ है। इसलिये इससे तर्क-वितर्क और शिक्षा मे बढोतरी हो सकती है।* *जबकि धर्म मानव निर्मित ‘कानून’ है। ये जो भी नीला -पीला हैँ वही धर्म है।*
*वैज्ञानिक तर्क वितर्क ही सफल जीवन का मूल आधार हैं !*


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चिंता नास्तिकता में आस्तिकता की

            धर्म में तर्क को जगह कम ही मिलती है पर यदि किसी बात में तर्क की सम्भावना हो तो उस
पर शोध करके आप उस विषय का तथ्यात्मक ज्ञान हासिल करने के लिये स्वतंत्र होने चाहिये |दिमागी
विकास के लिए दिमागी स्वतंत्रता अनिवार्य है नास्तिकता खुद में आस्तिकता न बन जाये इसके प्रति
हमें सचेत रहना होगा वर्ना वुद्धि जो धार्मिक आस्तिकता में अवरुद्ध हो जाती है वो कैसे विकसित हो
पायेगी,आमतौर पर लोग धर्म का संशोधन नहीं विनाश चाहते है,इसके पीछे   मूल कारण। यह है   की
संशोधन का अधिकार विशेष लोगो ने स्वार्थवश  अपने हाथ में ले  रखा है,और वे लोग संशोधन।   की
प्रिक्रिया कोअपनी व् अपने पूर्वजो की हर मानते है यदि वह अधिकार सार्वजनिक हो जाये तो कोई
विनाश के बारे में क्यों सोचेगा | धर्मो को देश दुनिया व् मानव के हित में संशोधित करके अपनी नव
पीढ़ियों को एक बेहतर जीवन दिया जा सकता था पर धर्म में अंधश्रद्धा के प्रवेश ने संशोधन की
संभावना की हत्या कर दी| और समाज को मानसिक रूप से अपंग बना दिया | धर्म इसी वजह से
मानवता और एकता का मूल शत्रु बन चुका है  यदि आप नास्तिक है तो नास्तिकता को एक पृथक
 धर्म बन्ने से बचाये क्योकि नास्तिकता निष्पक्ष होकर सोचने व् प्रयोग करने पर जोर देती है  नाकि
 भावुक होकर बह जाने पर |  हमारे आदर्श बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम.ललई सिंह
 यादव अथवा भगत सिंह इन सभी का ऐसा सोचना था और वो हमारे लिए सबकुछ करके नहीं गए
एक जीवन में कोई सब कुछ नहीं कर सकता ,ये महापुरुष हमारे लिए एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी छोड़
कर गए है जिसे हमें समझना होगा और अपना योगदान देने के लिए अपने दिमागी विकास को उनके
स्तर पर पहुचाने का सतत् प्रयास करना होगा ,अन्यथा उनकी बातो को भी हम विभिन्न कलो में उसी
तरह मानते रहेंगे जैसे धार्मिक लोग अपने धर्मग्रंथो को वगैर वुद्धि लगये मानते रहते है




जुल्म की पहचान मिटा के रख दे हम,चाहें तो कोहराम मचा के रख दे हम
अभी सूखे पत्तों की तरह बिखरे हुए है हम अगर हो जाये एक तो मनुवाद की जड़ें हिला कर रख दें हम



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Saturday 12 August 2017

आरक्षण क्योँ



जो भी लोग आरक्षण के विरोध में बोलते है वो
कुछ सवालो के जवाब दे.

१) आरक्षण क्या है?
२) आरक्षण देने की नौबत क्यों आई?
3) आरक्षण क्यों दिया गया?
4) आरक्षण किसे दिया गया?
5) क्या आरक्षण सिर्फ Sc, ST, और OBC के
लिए ही है?
6) क्या आरक्षण से सच में देश का नुकसान हो
रहा है / या विकास हो रहा है ?
7) आरक्षण के लिए पैसे कहा से आते है?
8) क्या देश में आरक्षण से दुसरो के हक़ पे गदा आ
रही है?
बहुत से लोग इन्ही बातों के लिए आरक्षण का
विरोध करते है. पर कभी खुद की अकल नहीं
चलाते. बस सुनी सुनाई बातों पे विश्वास रख
देते है. जान बुझ के खुद को अँधेरे में रखते है.
चलिए सब से पहले पहले सवाल का जवाब देते है.
१) आरक्षण क्या है?
आरक्षण जो पिछड़े जाती के लोग है उन्हें आधुनिक
लोगों के साथ लाने के लिए किया गया एक
प्रयास है. ताकि देश में सभी को समानता का
हक़ मिले और देश का विकास बनता रहे.
२) आरक्षण देने की नौबत क्यों आई?
इस सवाल का जवाब सब से महत्त्वपूर्ण है. लोग
आरक्षण का विरोध तो करते है लेकिन ये नहीं
सोचते की आखिर आरक्षण की जरुरत ही क्यों
पड़ी???
क्या है किसीके पास जवाब? अरे भाई तुम लोग
सिर्फ किस का खून हुवा बस यही बात देख रहे
हो... पर वो खून क्यों हुवा और किसने किया
इसकी तरफ ध्यान क्यों नहीं देना चाहते???
५००० साल पहले आर्यो ने यहाँ की जनता को
अपना गुलाम बनाया. आर्य (आज के ब्राम्हण)
उन्होंने अपनी सत्ता और लालच के लिए यहाँ की
जनता को बाँट दिया. ताकि लोग उनका
विरोध न कर सके. जिन्होंने विरोध करने की
कोशिश की उन्हें अछूत, शूद्र कहकर समाज से
बहिस्कृत किया. अपनी सत्ता को अबाधित
रखने के लिए इंसानो को इंसान से ही अलग कर
दिया. जात पात बनाके इंसानो को आपस में ही
बाँट दिया. इसका असर भी हुवा, लोग एक दूसरे
को खुद से अलग समझने लगे. कोई बड़ा बन गया
कोई बेवजह गुलाम बन गया. ५००० साल तक
इनपे जो अत्याचार हुवे वो इंसानियत को
शर्मसार कर गए. कमर में झाड़ू, गले में मटका,
जमीं पे थूंक भी नहीं सकते, पैसा कमा नहीं सकते,
गाव का पानी पी नहीं सकते, गाव के बहार
रहो, मरे हुवे, फेंके हुवे जानवरो का मॉस खाओ,
सड़ा गला पानी पीओ जिसे कुत्ते भी न पिए.
उन्हें कभी इंसान ही समझा न गया. उनके सारे
अधिकार छीन लिए गए. वो बाकि जातियों से
इतना पिछड़ गए की उन्हें लगने लगा उनका जन्म
गुलामी के लिए हीहुवा है. बिना पैसे के सेवा
करते रहो बस. तुम्हे सांस तक पूछके लेनी पड़ती
थी. उनका स्वाभिमान ही चक्काचूर कर दिया
गया. वो इंसान तो थे पर इंसान नहीं. फिर
बताइये क्यों न दिया जाये आरक्षण??? क्या
वो इंसान नहीं? जीने का हक़ सिर्फ तुम लोगों
को है? तुम यहाँ महलो में रहो, पार्टीया
मनाओ, खुश रहो. और वो??? सड़क पे सिसटकर
मरते रहे??? अगर आप के साथ ऐसा हो तो????
अरे सीधी सी बात है अगर दो भाइयों में से
किसी एक को सब कुछ मिले और दूसरे को कुछ भी
नहीं तो क्या ये सही है? कभी खुद को भी दूसरे
भाई की जगह रख कर सोचे. क्या तब भी यही
कहेंगे? आप खुद सोचिये अगर आरक्षण की वजह से
उन की गुलामी टूटती है तो क्या ये बुरा है?
क्या वो देश का हिस्सा नहीं? या फिर आप भी
कहोगे ये इंसान नहीं????

3) आरक्षण क्यों दिया गया?>>>
आरक्षण इसी लिए दिया जाता है ताकि देश के
सभी लोग विकास करे. खुद का भी और देश का
भी. अरे सीधी सी बात है अगर दो भाइयों में से
किसी एक को सब कुछ मिले और दूसरे को कुछ भी
नहीं तो क्या ये सही होगा? किसी के साथ
अन्याय न हो, किसीके अधिकार छीने न जाये,
सब को समानता से जीने का अधिकार मिले इस
लिए दिया जाता है आरक्षण.
>
>
4) आरक्षण किसे दिया गया?>>>
इसका जवाब बहुत बड़ा है. शार्टकट में बताना
चाहूंगा. जो भी जातिया जिन्हें अछूत यार फिर शुद्र
कहकर  संबोधित करते थे उन्हें आरक्षण की व्यवस्था
की गई क्योकि इनकी भी स्थिति बहुत ही ख़राब थी
पर खुद को हिन्दू बोलने वाले उच्चवर्णीय लोगो ने इन्हें
कभी भी हिन्दू नहीं समझा |अरे भला हो बाबासाहेब
का जिन्होंने तुम्हे तुम्हारे अधिकार वापस दिलाये.
आज पढ रहे हो ,कमा रहे हो, दूसरे लोगों से कन्धा
से कंधा मिला के चल रहे हो ये बाबासाहेब के
संविधान की वजह से.लेकिन फिर भी इन्ही लोगो
ने बाबासाहेब के प्रति तुम्हारे मन में विष घोल दिया.
तुम्हारे असली रक्षक बाबासाहेब थे जिन्हें तुम लोगो ने
अपना दुश्मन समझा और आज भी वही कर रहे हो
अगर कथित उच्वर्णियों को तुम्हारी चिंता होती तो क्या
हिन्दू होकर भी वो तुम्हारे साथ पक्षपात करते?हिन्दू
कोड बिल का भी विरोध किया गया क्यों????क्योकि
कथित उछवर्णियो को ये मंजूर नहीं था की निचले जाती
के लोग भी प्रगति करें |आप चाहे तो बालगंगाधर के
विचार पढ़ ले  उसने कहा था कुणबी क्या लोकसभा में हल
चलाएंगे ?माली क्या फूल लगाएंगे?? और भी बहुत कुछ कहा था
अरे इसने तो शिवाजी महाराज को भी शुद्र कह के अपमानित
किया था फिर आप लोग ही सोचिये क्या इन्हें सच में मूलनिवासियो
की तो छोडो पर हिन्दुओ की भी कदर है क्या ??

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Thursday 10 August 2017

"सच" जिसे लोग नजरअंदाज करते हैं

*पूरा पढ़ना📜*

डॉ अम्बेडकर ने जितना उपकार भारत के बहुजनों पर किया है उससे कहीं ज्यादा इस देश के बाकि लोगों के लिए किया है पर अफ़सोस लोग उन्हें सिर्फ सविधान निर्माता और दलितों की आजादी के मसीहा के रूप में जानते है।इस लेख को पढ़िए और जानिये उनके द्वारा किये गए वो अविस्मरणीय कार्य जो केवल दलितों के लिये नहीं बल्कि इस देश के गर्भ में पल रहे बच्चे से लेकर महिलाओं व् पुरुषों युवाओं व् वजुर्गों सबके लिए थे:-
1. सरदार पटेल के तीव्र विरोध के बावजूद उन्होंने महिलाओ सहित सभी को वोट का सवैधानिक अधिकार दिलाया।
2. महिलाओ को पुरुषो के समान वेतन दिलवाने का श्रेय उन्ही को जाता है।
3. महिलाओ के लिए प्रसूति अवकाश की व्यवस्था की।
4. 12 घण्टे काम करने की अवधी को घटाकर 8 घण्टे किए, इसी कड़ी में हफ्ते में 1 दिन के जरूरी अवकाश की व्यवस्था की।
5. व्यापर यूनियन को सरकारी मान्यता दिलवाई ताकि वो कानूनन अपनी मांग उठा सके।
6. भारत में एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज की व्यवस्था की ताकि सरकार के किसी विभाग के बंद होने पर कर्मचारियों को नौकरियों से न निकाला जाए।
7. कामगार वर्ग के हितो की रक्षा के लिए बिमा स्कीम लागू की।
8. हर 5 साल में वित्त आयोग की व्यवस्था की।
9. 1925 में अपनी पी०एच०डी० की थीसिस “प्रोब्लम ऑफ़ रुप्पी- ईट्स प्रोब्लम एंड ईट्स सोल्युशन” को हिल्टन यंग कमीशन से साझा किया और भारत में रिज़र्व बैंक की स्थापना करवाई।
10. एक न्यूनतम वेतनमान की व्यवस्था की।
11. उद्योग और कृषि के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सस्ती व प्रचुर मात्रा में बिजली की जरूरत की सिफारिश की और बिजली विभाग, निगम और ग्रीड की स्थापना सुनश्चित की।
12. भारतीय सांख्यिकीय एक्ट बनाया जो देश में महंगाई उन्मूलन, मजदूरी, आय, लोन, बेगारी आदि सम्बंधित योजनाओ के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े मुहैया करवाता है।
13. मजदूरो के हितों की रक्षा के लिए मजदूर विकास कोष की स्थापना।
14. देश के विकास में तकनीक और कुशल कामगार की जरूरत को ध्यान में रखते हुए टेक्निकल ट्रेनिंग और स्किल्ड वर्कर के लिए स्कीम बनाई।
15. बिजली के साथ सिंचाई की उचित व्यवस्था हो, इसकी देखरेख के लिए उन्होंने दो तकनीकी संगठन की व्यवस्था की, जो आज सेंट्रल वाटर कमीशन एवम् सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथोरिटी के नाम से जाने जाते है।
16. बिजली एवं सिंचाई के लिए प्रोजेक्ट बनाए जिनमे दामोदर वेल्ली, भाखड़ा नागल, सोन रीवर वेल्ली, हीराकुण्ड प्रोजेक्ट प्रमुख है।
17. हर 6 महीने में महंगाई भत्ते की व्यवस्था उन्ही की देन है।
18. कर्मचारियों के लिए प्रोवीडेंट फंड की स्थापना की।
19. कानूनन हड़ताल करने का हक़ दिलवाया ताकि अधिकारो की रक्षा के लिए विरोध प्रकट किए जा सके।
20. कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन की कानूनन व्यवस्था की। 🙏🏾अतःपुरे देश के बच्चे से वजुर्गों तक से अपील है कि 
फादर ऑफ़ मॉडर्न इंडिया बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी को इस देश का महान उद्धारक, मानवता का जनक, जातिवाद का नाशक, शिक्षा समानता बंधुत्वता का पुरोधा भारत रत्न के सम्पूर्ण जीवन से प्रेरणा लें उसे देशद्रोही न समझो। उसकी मूर्तियाँ मत तोड़ो उनका पिता तुल्य सम्मान करो।बल्कि उनके किये कार्यों से सीख लो व् उनकी शिक्षा से देश को 0⃣भूख 0⃣भय 0⃣भ्रष्टाचार व् उंच नीच के प्रपंच से देश को निजात दिलवाने में सहयोग करो।🙏realhistory

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एक सचाई जो मनुवादियों ने मूलनिवासियो से छुपाई


अयोध्या का प्राचीन नाम साकेत है। मौर्य शासनकाल तक इसका नाम साकेत ही था। यहाँ पर कोशल नरेश प्रसेनजित ने बावरी नाम के बौद्ध भिक्षु की मृत्य के पश्चात उसकी याद में "बावरी बौद्ध विहार" बनवाया था। राजा प्रसेनजित गौतम बुद्ध के समय में थे। इस बौद्ध विहार को ब्राह्मण राजा पुष्यमित्र शुंग(राम)ने ध्वस्त कर दिया था। यह स्थान बावरी नाम से विख्यात हो गया था।

बाद में राजा पुष्यमित्र शुंग (राम) ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से बदलकर साकेत किया और साकेत का नाम भी अयोध्या कर दिया । अयोध्या=बिना युद्ध के बनाई गयी राजधानी..

बाल्मीकि कवि ने अपने राजा पुष्यमित्र शुंग (राम) को खुश करने के लिए एक काव्य की रचना की जिसमे राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और रावण के रूप में मौर्य सम्राटो का वर्णन करके उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया।
बाद में राजा के निर्देश पर इस काव्य में कई दन्त कथाएं(बौद्ध धर्म की जातक कथाये) और काल्पनिक कथाएं,वंशावली आदि सम्मलित करके इसकी कथा में बदलाव किया और इसे धर्म ग्रन्थ बना लिया गया...

अयोध्या का बावरी नामक स्थान पर किसी मुस्लिम शासक ने मस्जिद का निर्माण कराया । यह मस्जिद बावरी नामक स्थान पर बनी होने के कारण बावरी मस्जिद कहलाती थी। कुछ दिनों में इसका नाम बिगड़कर बाबरी मस्जिद हो गया। यह मस्जिद बाबर ने नही बनवाई। अगर यह मस्जिद बाबर बनवाता तो मुगल काल में पैदा हुआ तुलसीदास भी अपनी रामचरित मानस में ज़रूर लिखते....

फिर unpaid police(अन्य पिछड़ा वर्ग) को आगे करके बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। इसके बाद केस हाई कोर्ट में गया। पुरातत्व विभाग द्वारा इस स्थान की खुदाई की गयी लेकिन राम मंदिर का कोई प्रमाण नही मिला क्योकि वहाँ राम मंदिर नही था। खुदाई में बौद्ध विहार के अवशेष प्राप्त हुए तो उस स्थान की खुदाई रुकवा दी। हाई कोर्ट के वकील ने फैसला सुनकर इस जमीन के तीन हिस्से कर दिए।

हाई कोर्ट के वकील mr. Agrawal ने अपनी रिपोर्ट में लिखा की यह स्थान मूलतः बौद्ध स्थल था।अब केस सुप्रीम कोर्ट में है।
इस बात की खबर बौद्ध धर्म के अनुयायियों को चली तो उन्होंने भी अपना दावा ठोक दिया। अब तीन लोग इस भूमि के दावेदार है।

मूलतः यह ज़मीन बौद्धों की है और अयोध्या में उस स्थान पर राम मंदिर नही बनेगा....
ये आरएसएस के लोग जानते है लेकिन हमारे लोग नही जानते है।


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भारत का अनोखा विद्वान

1. भारत के सबसे पढे व्यक्ति2. सबसे ज्यादा किताब लिखने वाले3. सबसे तेज स्पीड से ज्यादा टाईप करने वाले4. सबसे ज्यादा शब्द टाईप करने वाले5. सबसे ज्यादा आंदोलन करें6. महिला अधिकार के लिए संसद में इस्तीफा देने वाले7. दलित, पिछडो के हको को दिलाने वाले8. हिन्दू धर्म के ग्रन्थ मनुस्मर्ति को चोराहे पर जलाने वाले9. जातिवाद को समाप्त करने के लिए पंडतानि से sadi करने वाले10. गरीब मज़लूमो के हको के लिए 4 बच्चे कुर्बान करने वाले11. 2 लाख किताबो को पढ़कर याद रखने वाले12. भारत का सविधान लिखा13. पूना पैक्ट लिखा14. मूक नायक पत्रिका निकाली15. बहिस्किरत समाचार पत्र निकाला16. सबसे तेज लिखने वाले17. दोनों हाथो से लिखने वाले18. ग़ांधी जी को जीवन दान देने वाले19. सबसे काबिल बैरिस्टर20. मुम्बई के सेठ के बेटे को फर्जी मुक़दमे से बरी कराने वाले21. योग करने वाले22. सबसे ईमानदार23. 18 से 20 घंटे पढ़ने वाले24. सरदार पटेल को obc का मतलब समझने वाले25. स्कूल के बहार बैठकर और अपमान सहकर उच्च शिक्षा पाने वाले25. हम सबकी भलाई के लिए पत्नी रमाबाई को खोने वाले ..........दिल से जय भीम.*बाबा साहब डॉ.भीमराव रामजी अम्बेडकर*(एक संक्षिप्त परिचय)डॉ.बाबासाहब अंबेडकर 9 भाषाएँ जानते थे।1) मराठी (मातृभाषा)2) हिन्दी3) संस्कृत4) गुजराती5) अंग्रेज़ी6) पारसी7) जर्मन8) फ्रेंच9) पालीउन्होंने पाली व्याकरण और शब्दकोष (डिक्शनरी) भी लिखी थी, जो महाराष्ट्र सरकार ने "Dr.Babasaheb Ambedkar Writing andSpeeches Vol.16 "में प्रकाशित की हैं।बाबासाहब अंबेडकर जी ने संसद में पेश किए हुए विधेयक1) महार वेतन बिल2) हिन्दू कोड बिल3) जनप्रतिनिधि बिल4) खोती बिल5) मंत्रीओं का वेतन बिल6) मजदूरों के लिए वेतन (सैलरी) बिल7) रोजगार विनिमय सेवा8) पेंशन बिल9) भविष्य निर्वाह निधी (पी.एफ्.)बाबासाहब के सत्याग्रह (आंदोलन)1) महाड आंदोलन 20/3/19272) मोहाली (धुले) आंदोलन 12/2/19393) अंबादेवी मंदिर आंदोलन 26/7/19274) पुणे कौन्सिल आंदोलन 4/6/19465) पर्वती आंदोलन 22/9/19296) नागपूर आंदोलन 3/9/19467) कालाराम मंदिर आंदोलन 2/3/19308) लखनौ आंदोलन 2/3/19479) मुखेड का आंदोलन 23/9/1931बाबासाहब अंबेडकर द्वारा स्थापित सामाजिक संघटन1) बहिष्कृत हितकारिणी सभा - 20 जुलै 19242) समता सैनिक दल - 3 मार्च 1927राजनीतिक संघटन1) स्वतंत्र मजदूर पार्टी - 16 अगस्त 19362) शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन- 19 जुलै 19423) रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया- 3 अक्तूबर 1957धार्मिक संघटन1) भारतीय बौद्ध महासभा -4 मई 1955शैक्षणिक संघटन1) डिप्रेस क्लास एज्युकेशन सोसायटी- 14 जून 19282) पीपल्स एज्युकेशन सोसायटी- 8 जुलै 19453) सिद्धार्थ काॅलेज, मुंबई- 20 जून 19464) मिलींद काॅलेज, औरंगाबाद- 1 जून 1950अखबार, पत्रिकाएँ1) मूकनायक- 31 जनवरी 19202) बहिष्कृत भारत- 3 अप्रैल 19273) समता- 29 जून 19284) जनता- 24 नवंबर 19305) प्रबुद्ध भारत- 4 फरवरी 1956बाबासाहब अंबेडकर जी ने अपने जिवन में विभिन्न विषयों पर 527 से ज्यादा भाषण दिए।बाबासाहब अंबेडकर को प्राप्त सम्मान1) भारतरत्न2) The Greatest Man in the World (Columbia University)3) The Universe Maker (Oxford University)4) The Greatest Indian (CNN IBN & History Tvबाबासाहब अंबेडकर जी इनकीनिजी किताबें (उनके पास थी)1) अंग्रेजी साहित्य- 1300 किताबें2) राजनिती- 3,000 किताबें3) युद्धशास्त्र- 300 किताबें4) अर्थशास्त्र- 1100 किताबें5) इतिहास- 2,600 किताबें6) धर्म- 2000 किताबें7) कानून- 5,000 किताबें8) संस्कृत- 200 किताबें9) मराठी- 800 किताबें10) हिन्दी- 500 किताबें11) तत्वज्ञान (फिलाॅसाफी)- 600 किताबें12) रिपोर्ट- 1,00013) संदर्भ साहित्य (रेफरेंस बुक्स)- 400 किताबें14) पत्र और भाषण- 60015) जिवनीयाँ (बायोग्राफी)- 120016) एनसाक्लोपिडिया ऑफ ब्रिटेनिका- 1 से 29 खंड17) एनसाक्लोपिडिया ऑफ सोशल सायंस- 1 से 15 खंड18) कैथाॅलिक एनसाक्लोपिडिया-1 से 12 खंड19) एनसाक्लोपिडिया ऑफ एज्युकेशन20) हिस्टोरियन्स् हिस्ट्री ऑफ दि वर्ल्ड- 1 से 25 खंड21) दिल्ली में रखी गई किताबें-बुद्ध धम्म,पालि साहित्य,मराठी साहित्य- 2000 किताबें22) बाकी विषयों की 2305 किताबेंबाबासाहब जब अमेरिका से भारत लौट आए तब एक बोट दुर्घटना में उनकी सैंकडो किताबें समंदर मे डूबी।बाबासाहब अंबेडकर जी1) महान समाजशास्त्री2) महान अर्थशास्त्री3) संविधान शिल्पी4) आधुनिक भारत के मसिहा5) इतिहास के ज्ञाता और रचियाता6) मानवंशशास्त्र के ज्ञाता7) तत्वज्ञानी (फिलाॅसाॅफर)8) दलितों के और महिला अधिकारों के मसिहा9) कानून के ज्ञाता (कानून के विशेषज्ञ)10) मानवाधिकार के संरक्षक11) महान लेखक12) पत्रकार13) संशोधक14) पाली साहित्य के महान अभ्यासक (अध्ययनकर्ता)15) बौध्द साहित्य के अध्ययनकर्ता16) भारत के पहले कानून मंत्री17) मजदूरों के मसिहा18) महान राजनितीज्ञ19) विज्ञानवादी सोच के समर्थक20) संस्कृत और हिन्दू साहित्य के गहन अध्ययनकर्ता थे।बाबासाहब अंबेडकर की कुछ विशेषताएँ1) पाणी के लिए आंदोलन करनेवाले विश्व के पहल महापुरुष2) लंदन विश्वविद्यालय के पुरे लाईब्ररी के किताबों की छानबीन कर उसकीजानकारी रखनेवाले एकमात्र महामानव3) लंदन विश्वविद्यालय के 200 छात्रों में नंबर 1 का छात्र होने का सम्मान प्राप्त होनेवाले पहले भारतीय4) विश्व के छह विद्वानों में से एक5) विश्व में सबसे अधिक पुतले बाबासाहब अंबेडकर जी के हैं।6) लंदन विश्वविद्यालय मे डी.एस्.सी.यह उपाधी पानेवाले पहले और आखिरी भारतीय7) लंदन विश्वविद्यालय का 8 साल का पाठ्यक्रम 3 सालों मे पूराकरनेवाले महामानवबाबासाहब अंबेडकर जी के वजह से ही भारत में "रिजर्व बैंक" की स्थापना हुईं।बाबासाहब डॉ.अंबेडकर जी ने अपने डाॅक्टर ऑफ सायंस के लिए ' दि प्राॅब्लेम ऑफ रूपी' यह शोध प्रबंध भी लिखा था।*Dr.BHIMRAO AMBEDKAR* (1891-1956)*B.A., M.A., M.Sc., D.Sc., Ph.D., L.L.D.,*D.Litt., Barrister-at-Law.B.A.(Bombay University)Bachelor of Arts,MA.(Columbia university) MasterOf Arts,M.Sc.( London School ofEconomics) MasterOf Science,Ph.D. (Columbia University)Doctor ofphilosophy ,D.Sc.( London School ofEconomics) Doctorof Science ,L.L.D.(ColumbiaUniversity)Doctor ofLaws ,D.Litt.( Osmania University)Doctor ofLiterature,Barrister-at-Law (Gray's Inn,London) lawqualification for a lawyer inroyal court ofEngland.Elementary Education, 1902Satara,MaharashtraMatriculation, 1907,Elphinstone HighSchool, Bombay Persian etc.,Inter 1909,ElphinstoneCollege,BombayPersian and EnglishB.A, 1912 Jan, ElphinstoneCollege, Bombay,University of Bombay,Economics & PoliticalScienceM.A 2-6-1915 Faculty of PoliticalScience,Columbia University, New York,Main-EconomicsAncillaries-Sociology, HistoryPhilosophy,Anthropology, PoliticsPh.D 1917 Faculty of PoliticalScience,Columbia University, New York,'TheNational Divident of India - AHistorical andAnalytical Study'M.Sc 1921 June London SchoolofEconomics, London 'ProvincialDecentralization of ImperialFinance inBritish India'Barrister-at- Law 30-9-1920Gray's Inn,London LawD.Sc 1923 Nov London SchoolofEconomics, London 'TheProblem of theRupee - Its origin and itssolution' wasaccepted for the degree of D.Sc.(Economics).L.L.D (Honoris Causa) 5-6-1952ColumbiaUniversity, New York For HISachievements,Leadership and authoring theconstitution ofIndiaD.Litt (Honoris Causa)12-1-1953 OsmaniaUniversity, Hyderabad For HISachievements,Leadership and writing theconstitution ofIndia

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रक्षाबंधन का कड़वा सच

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सच रक्षाबंधन का
अपना तर्क लगायें. इतिहास को जाने. नया इतिहास रचें.
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रक्षाबंधन भाई बहन का त्योहार नहीं है. क्या हिंदुओं में ही भाई बहन होते हैं. सिक्ख, मुसलमानों, ईसाईयों, जैन पारसियों या बौद्धों में भाई बहन नहीं होते. यदि यह त्यौहार भाई बहनों का त्यौहार होता तो सिक्ख, मुसलमान, ईसाई, जैन पारसी या बौद्ध भाई बहन भी इसे मनाते, वर्ण व्यवस्था के अनुसार यह ब्राह्मणों का त्योहार है। इतिहास काल से अब तक ब्राह्मणों द्वारा क्षत्रियों को रक्षा सूत्र बांधा जाता रहा है उन्हे ब्राह्मणों की रक्षा की शपथ दिलाई जाती रही है। ”धर्मशास्त्र का इतिहास” नामक पुस्तक के चौथेखण्ड के पृष्ठ १२४ में भारत रत्न पी वी काणे (पांडुरंग वामनराव काणे) लिखते है “आज ब्राम्हण शूद्र के घरों मे जाकर उन्हें तथा कथित रक्षा सूत्र(जो वास्तव मे बंधक सूत्र है) बाँधते हुये देखे जा सकते हैं और वह रक्षा सूत्र बांधते है तो संस्कृत का श्लोक भी पढ़ते है।मन्त्र:-
“येन बध्दो ,दानेन्द्रो बलि राजा महाबल:।
तेन त्वाम प्रति बधनामिअहम रक्षे माचल ,माचल, माचल।।
अर्थात जिस प्रकार तुम्हारे दानवीर बलि राजा को हमारे पूर्वजो ने बंदी बनाया था उसी प्रकार हम तुम्हे भी मानसिक रूप से बंदी बना रहे है। हिलो मत, हिलो मत, हिलो मत, अर्थात जैसे हो वैसे ही रहो अपने मे सुधार ना करो।
अर्थात मैं तुझे ये धागा उस उद्देश्य से बंधता हूँ जिस उद्देश्य से तेरे सम्राट बलि राजा को बांधा गया था, आज से तू मेरा गुलाम है मेरी रक्षा करना तेरा कर्त्तव्य है, अपने समर्पण से हटना नहीं।
महाराज बलि मूलनिवासियों के सबसे ज्यादा शक्तिशाली राजा हुए थे जिन्होंने पूरे देश से ब्राह्मणों को खदेड़ दिया था और देश को ब्राह्मणमुक्त कर दिया था। जब ब्राह्मणों का महाराज बलि पर कोई वस नहीं चला तो ब्राह्मणों ने अपने धर्म के अनुसार यज्ञ करवाने के नाम से एक चल चली।महाराज बलि को ऋग्वेद के अनुसार यज्ञ करने के लिए मना लिया गया। यज्ञ के बाद ऋग्वेद के अनुसार दान देना और ब्राह्मणों को प्रसन्न करना जरुरी है। ब्राह्मण तभी प्रसन्न होता है जब उसको उसकी इच्छानुसार दान मिले। यज्ञ “वामन” नामक ब्राह्मण ने महाराज बलि द्वारा धोखे से तीन वचन लेकर पहले वचन में महाराज बलि से पूरी धरती अर्थात जहाँ जहाँ महाराज बलि का शासन था वो सारी भूमि मांग ली। दूसरे वचन में समुद्र मांग लिया अर्थात जहाँ जहाँ महाराज बलि का समुद्रों पर कब्ज़ा था और तीसरे वचन में महाराज बलि से उनका सिर मांग लिया था। ब्राह्मण धर्म के जाल में फंसे मूलनिवासियों की स्थित आज बिल्कुल महाराज बलि के जैसी बनी हुई है। ना तो महाराज बलि रक्षासूत्र के नाम पर बंधक सूत्र बंधवाते और न ही ब्राह्मण उनका सब कुछ जान समेत ठग लेते।ब्राह्मण धर्म के धोखे में फंसे मूलनिवासी आज अपना सब कुछ ब्राह्मणों को दे रहे है जबकि न तो यह धर्म मूलनिवासियों का है और न ही मुर्ख बनकर मूक बने लूटते रहना कोई धर्म है। अगर इतिहास में भी झांक कर देखा जाये तो आज तक किसी भी ब्राह्मणी त्यौहार से मूलनिवासियों का कोई फायदा नहीं हुआ है। मूलनिवासी बिना सोचे समझ हीे ब्राह्मणों रीतति रिवाजों और धार्मिक परम्पराओं को ढोते जा रहे है और यही रीति रिवाज और धार्मिक परम्पराए मूलनिवासियों की गुलामी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार है। विश्व के अन्य देशों में रक्षाबंधन जैसे पाखंड और अंधविश्वास पर आधारित त्यौहार नहीं मनाये जाते। जैसा की ब्राह्मण कहते है कि रक्षा बंधन ना बांधने से हानि होती है। आज तक विश्व के किसी भी देश में कोई हानि नहीं हुई। असल में हानि सिर्फ इंडिया में ही होती है। ब्राह्मण एक भी परम्परा को नहीं तोड़ना चाहता। अगर एक भी परम्परा टूट गई तो ब्राह्मणों का पाखंड, अन्धविश्वास और लोगों को लूटने का अवसर कम हो जायेगा। सच बात तो ये है कि रक्षाबंधन का भाई बहन के प्रेम से कोई लेना देना नहीं। रक्षाबंधन का मामला ही कुछ अलग है” रक्षाबंधन” इस शब्द का अर्थ है रक्षा का बंधन, अर्थात गुलामी का बंधन। सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी ने अपनी बहन नानकी से राखी बंधवाने से इंकार किया। क्यों? क्योकि गुरु नानक जी ने साफ़ साफ़ कहा की औरत मर्द पर सुरक्षा के लिए निर्भर न रहे। आज के काल में बुद्धिस्ट भिक्षुओ ने भी रक्षासूत्र बाँधना शुरू कर दिया है। यह बौद्ध भिक्षुओं के ब्राह्मणीकरण की नयी साज़िश है। इस आध्यात्मिक गुलामी का धिक्कार करे। महात्मा फुले ने खुद ही कहा था “आध्यात्मिक गुलामी के कारण मानसिक गुलामी आई,मानसिक गुलामी के कारण सोच विचार करना बंद कर दिया, सोच विचार बंद होने के कारण आर्थिक गुलामी आई और सारे मूलनिवासी ब्राह्मणों की गुलामी के शिकार बन गए।
आओ हम महात्मा फुले के पद चिन्हो पर चले “
नमो बुद्धाय।
जय भीम ।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


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*1925 में R S S बना ओर ब्राह्मणों ने कसम खाई की हम अगले 100 सालो में भारत को हिन्दू राष्ट्र बना देंगे यानी राम राज स्थापित कर देंगे और फिर से मनुस्मृति लागू कर देंगे।*
*इन शुद्रो के पीछे फिर से झाड़ू बंधवा देंगे और सारे अधिकार खत्म कर देंगे।*
*2025 में 100 साल पूरे होने जा रहे है और इन ब्राह्मणों के मंसूबे साफ दिखाई दे रहे है।*
*लेकिन SC,ST,OBC के लोगो को ये दिखाई नही दे रहा है।बहुजन समाज के संवैधानिक अधिकार धीरे धीरे खत्म किये जा रहे है,लेकिन बहुजन समाज है कि अभी भी अपनी मस्ती में ही डूबा हुआ है।*
*1956 में बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी ने कहा कि में अपने बहुजन लोगो को 2200 साल की गुलामी से बाहर निकाल कर लाया हूँ और में तुम्हे 22 आज्ञाएं देता हूँ। और अगर तुमने ईमानदारी से मेरी इन 22 आज्ञाओं का पालन किया तो तुम अगले 10 साल में मांगने वाले से देने वाले बन जाओगे। अगर 🅰️🅿️ने मेरी इन 22 आज्ञाओं का पालन नही किया तो आने वाले 100 सालों में तुम फिर वही पहुचा दिए जाओगे जिस गुलामी से मैने तुमको बाहर निकाला है।*
*लेकिन आज 60,70 साल के बाद भी हम लोग ये हिसाब लगा रहे है कि बाबा साहब ने ठीक कहा था या गलत।*
 *याद रखना बाबा साहब की चेतावनी कभी गलत नही होगी, अगर हमने बाबा साहब की बात नही मानी तो, ध्यान रखना*
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अप्प दीपो भव

बौद्ध दर्शन का एक सूत्र वाक्य है- ‘अप्प दीपो भव’ अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो। तथागत सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के कहने का मतलब यह है कि कि...