Translate

Thursday 10 August 2017

रक्षाबंधन का कड़वा सच

🌸🌸🌸🌸🌸🌹
सच रक्षाबंधन का
अपना तर्क लगायें. इतिहास को जाने. नया इतिहास रचें.
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
रक्षाबंधन भाई बहन का त्योहार नहीं है. क्या हिंदुओं में ही भाई बहन होते हैं. सिक्ख, मुसलमानों, ईसाईयों, जैन पारसियों या बौद्धों में भाई बहन नहीं होते. यदि यह त्यौहार भाई बहनों का त्यौहार होता तो सिक्ख, मुसलमान, ईसाई, जैन पारसी या बौद्ध भाई बहन भी इसे मनाते, वर्ण व्यवस्था के अनुसार यह ब्राह्मणों का त्योहार है। इतिहास काल से अब तक ब्राह्मणों द्वारा क्षत्रियों को रक्षा सूत्र बांधा जाता रहा है उन्हे ब्राह्मणों की रक्षा की शपथ दिलाई जाती रही है। ”धर्मशास्त्र का इतिहास” नामक पुस्तक के चौथेखण्ड के पृष्ठ १२४ में भारत रत्न पी वी काणे (पांडुरंग वामनराव काणे) लिखते है “आज ब्राम्हण शूद्र के घरों मे जाकर उन्हें तथा कथित रक्षा सूत्र(जो वास्तव मे बंधक सूत्र है) बाँधते हुये देखे जा सकते हैं और वह रक्षा सूत्र बांधते है तो संस्कृत का श्लोक भी पढ़ते है।मन्त्र:-
“येन बध्दो ,दानेन्द्रो बलि राजा महाबल:।
तेन त्वाम प्रति बधनामिअहम रक्षे माचल ,माचल, माचल।।
अर्थात जिस प्रकार तुम्हारे दानवीर बलि राजा को हमारे पूर्वजो ने बंदी बनाया था उसी प्रकार हम तुम्हे भी मानसिक रूप से बंदी बना रहे है। हिलो मत, हिलो मत, हिलो मत, अर्थात जैसे हो वैसे ही रहो अपने मे सुधार ना करो।
अर्थात मैं तुझे ये धागा उस उद्देश्य से बंधता हूँ जिस उद्देश्य से तेरे सम्राट बलि राजा को बांधा गया था, आज से तू मेरा गुलाम है मेरी रक्षा करना तेरा कर्त्तव्य है, अपने समर्पण से हटना नहीं।
महाराज बलि मूलनिवासियों के सबसे ज्यादा शक्तिशाली राजा हुए थे जिन्होंने पूरे देश से ब्राह्मणों को खदेड़ दिया था और देश को ब्राह्मणमुक्त कर दिया था। जब ब्राह्मणों का महाराज बलि पर कोई वस नहीं चला तो ब्राह्मणों ने अपने धर्म के अनुसार यज्ञ करवाने के नाम से एक चल चली।महाराज बलि को ऋग्वेद के अनुसार यज्ञ करने के लिए मना लिया गया। यज्ञ के बाद ऋग्वेद के अनुसार दान देना और ब्राह्मणों को प्रसन्न करना जरुरी है। ब्राह्मण तभी प्रसन्न होता है जब उसको उसकी इच्छानुसार दान मिले। यज्ञ “वामन” नामक ब्राह्मण ने महाराज बलि द्वारा धोखे से तीन वचन लेकर पहले वचन में महाराज बलि से पूरी धरती अर्थात जहाँ जहाँ महाराज बलि का शासन था वो सारी भूमि मांग ली। दूसरे वचन में समुद्र मांग लिया अर्थात जहाँ जहाँ महाराज बलि का समुद्रों पर कब्ज़ा था और तीसरे वचन में महाराज बलि से उनका सिर मांग लिया था। ब्राह्मण धर्म के जाल में फंसे मूलनिवासियों की स्थित आज बिल्कुल महाराज बलि के जैसी बनी हुई है। ना तो महाराज बलि रक्षासूत्र के नाम पर बंधक सूत्र बंधवाते और न ही ब्राह्मण उनका सब कुछ जान समेत ठग लेते।ब्राह्मण धर्म के धोखे में फंसे मूलनिवासी आज अपना सब कुछ ब्राह्मणों को दे रहे है जबकि न तो यह धर्म मूलनिवासियों का है और न ही मुर्ख बनकर मूक बने लूटते रहना कोई धर्म है। अगर इतिहास में भी झांक कर देखा जाये तो आज तक किसी भी ब्राह्मणी त्यौहार से मूलनिवासियों का कोई फायदा नहीं हुआ है। मूलनिवासी बिना सोचे समझ हीे ब्राह्मणों रीतति रिवाजों और धार्मिक परम्पराओं को ढोते जा रहे है और यही रीति रिवाज और धार्मिक परम्पराए मूलनिवासियों की गुलामी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार है। विश्व के अन्य देशों में रक्षाबंधन जैसे पाखंड और अंधविश्वास पर आधारित त्यौहार नहीं मनाये जाते। जैसा की ब्राह्मण कहते है कि रक्षा बंधन ना बांधने से हानि होती है। आज तक विश्व के किसी भी देश में कोई हानि नहीं हुई। असल में हानि सिर्फ इंडिया में ही होती है। ब्राह्मण एक भी परम्परा को नहीं तोड़ना चाहता। अगर एक भी परम्परा टूट गई तो ब्राह्मणों का पाखंड, अन्धविश्वास और लोगों को लूटने का अवसर कम हो जायेगा। सच बात तो ये है कि रक्षाबंधन का भाई बहन के प्रेम से कोई लेना देना नहीं। रक्षाबंधन का मामला ही कुछ अलग है” रक्षाबंधन” इस शब्द का अर्थ है रक्षा का बंधन, अर्थात गुलामी का बंधन। सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी ने अपनी बहन नानकी से राखी बंधवाने से इंकार किया। क्यों? क्योकि गुरु नानक जी ने साफ़ साफ़ कहा की औरत मर्द पर सुरक्षा के लिए निर्भर न रहे। आज के काल में बुद्धिस्ट भिक्षुओ ने भी रक्षासूत्र बाँधना शुरू कर दिया है। यह बौद्ध भिक्षुओं के ब्राह्मणीकरण की नयी साज़िश है। इस आध्यात्मिक गुलामी का धिक्कार करे। महात्मा फुले ने खुद ही कहा था “आध्यात्मिक गुलामी के कारण मानसिक गुलामी आई,मानसिक गुलामी के कारण सोच विचार करना बंद कर दिया, सोच विचार बंद होने के कारण आर्थिक गुलामी आई और सारे मूलनिवासी ब्राह्मणों की गुलामी के शिकार बन गए।
आओ हम महात्मा फुले के पद चिन्हो पर चले “
नमो बुद्धाय।
जय भीम ।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


” आपको ये post अच्छी लगी होगी इस post को share जरुर करें। Blog को सब्सक्राइब जरुर करें and social media पर contact करें इस post के बारे में comment करें।

No comments:

अप्प दीपो भव

बौद्ध दर्शन का एक सूत्र वाक्य है- ‘अप्प दीपो भव’ अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो। तथागत सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के कहने का मतलब यह है कि कि...