Translate

Sunday 13 August 2017

चिंता नास्तिकता में आस्तिकता की

            धर्म में तर्क को जगह कम ही मिलती है पर यदि किसी बात में तर्क की सम्भावना हो तो उस
पर शोध करके आप उस विषय का तथ्यात्मक ज्ञान हासिल करने के लिये स्वतंत्र होने चाहिये |दिमागी
विकास के लिए दिमागी स्वतंत्रता अनिवार्य है नास्तिकता खुद में आस्तिकता न बन जाये इसके प्रति
हमें सचेत रहना होगा वर्ना वुद्धि जो धार्मिक आस्तिकता में अवरुद्ध हो जाती है वो कैसे विकसित हो
पायेगी,आमतौर पर लोग धर्म का संशोधन नहीं विनाश चाहते है,इसके पीछे   मूल कारण। यह है   की
संशोधन का अधिकार विशेष लोगो ने स्वार्थवश  अपने हाथ में ले  रखा है,और वे लोग संशोधन।   की
प्रिक्रिया कोअपनी व् अपने पूर्वजो की हर मानते है यदि वह अधिकार सार्वजनिक हो जाये तो कोई
विनाश के बारे में क्यों सोचेगा | धर्मो को देश दुनिया व् मानव के हित में संशोधित करके अपनी नव
पीढ़ियों को एक बेहतर जीवन दिया जा सकता था पर धर्म में अंधश्रद्धा के प्रवेश ने संशोधन की
संभावना की हत्या कर दी| और समाज को मानसिक रूप से अपंग बना दिया | धर्म इसी वजह से
मानवता और एकता का मूल शत्रु बन चुका है  यदि आप नास्तिक है तो नास्तिकता को एक पृथक
 धर्म बन्ने से बचाये क्योकि नास्तिकता निष्पक्ष होकर सोचने व् प्रयोग करने पर जोर देती है  नाकि
 भावुक होकर बह जाने पर |  हमारे आदर्श बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम.ललई सिंह
 यादव अथवा भगत सिंह इन सभी का ऐसा सोचना था और वो हमारे लिए सबकुछ करके नहीं गए
एक जीवन में कोई सब कुछ नहीं कर सकता ,ये महापुरुष हमारे लिए एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी छोड़
कर गए है जिसे हमें समझना होगा और अपना योगदान देने के लिए अपने दिमागी विकास को उनके
स्तर पर पहुचाने का सतत् प्रयास करना होगा ,अन्यथा उनकी बातो को भी हम विभिन्न कलो में उसी
तरह मानते रहेंगे जैसे धार्मिक लोग अपने धर्मग्रंथो को वगैर वुद्धि लगये मानते रहते है




जुल्म की पहचान मिटा के रख दे हम,चाहें तो कोहराम मचा के रख दे हम
अभी सूखे पत्तों की तरह बिखरे हुए है हम अगर हो जाये एक तो मनुवाद की जड़ें हिला कर रख दें हम



” आपको ये post अच्छी लगी होगी इस post को share जरुर करें। Blog को सब्सक्राइब जरुर करें and social media पर contact करें इस post के बारे में comment करें।

No comments:

अप्प दीपो भव

बौद्ध दर्शन का एक सूत्र वाक्य है- ‘अप्प दीपो भव’ अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो। तथागत सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के कहने का मतलब यह है कि कि...