1947 को मिली हुई आज़ादी सभी लोगों कि ना होकर केवल सत्ता का हस्तांतरण है। याने अंग्रेजों ने भारत के लोगो को सत्ता सौंप दी। इसलिए ये हमारे आज़ादी का दिन नहीं है।
भारत में रहनेवाला बहुजन समाज आज भी गुलाम है। क्योंकी आज़ादी का मतलब अपने भविष्य का फैसला करने का, खुद निर्णय लेना माने आज़ादी। आज जिन लोगो के लिए ये आज़ादी है उन आज़ाद लोगों को अपले भविष्य का निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। उनके भविष्य का निर्णय सरकार ले रही है। अगर आज़ादी का मतलब अपने भविष्य का फैसला करने का निर्णय लेना इस बात को थोडी देर के लिए सच माने तो सही में बहुजन समाज के लोगो को अपने निर्णय लेने का अधिकार है क्या? ऐसा सवाल खडा होता है।
ब्राम्हणो के तथाकथित आज़ादी के आंदोलन में बहुजन समाज के महापुरुष सामील नहीं थे। इसलिए भी कहा जा सकता है की ये बहुजन के आजादी का आंदोलन नहीं था। क्योंकी ये आजादी का आंदोलन बहुूजन समाज के लिए नहीं था केवल और केवल ब्राम्हणो के आजादी के लिए था ऐसा हमारे महापुरुषों को लगता था। इसलिए बहुजन समाज के महापुरुष इस आजादी के आंदोलन में सामील नहीं थे। अगर हमारे महापुरुष ब्राम्हणो के आजादी के आंदोलन में सामील नहीं थे तो क्या कर रहे थे? ऐसा सवाल कुछ लोग खडा कर सकते है। हमारे महापुरुष ब्राम्हणो के आजादी के आंदोलन में सामील ना होकर बहुजन समाज के आजादी का अलग से आंदोलन चला रहे थे। क्यों की उन्हे पता था हमे और हमारे समाज को इंग्रजो ने नहीं तो ब्राम्हणो ने, उनकी व्यवस्थाने गुलाम बनाया है। इसलिए हमारे महापुरुषों का आंदोलन इंग्रजो के गुलामी से नहीं तो ब्राम्हणो के गुलामी से मुक्त करने का था।
तथाकथित आजादी के दुसरे दिन याने 16 अगस्त 1947 को जब पुरा देश आजादी का जल्लोष मना रहा था। ऐसे स्थिती में सत्यशोधक साहित्यरत्न अण्णाभाउ साठे ने जोर की बारीश होने के बाद भी और पोलीस प्रशासन मना करने के बाद भी मुंबई के आजाद मैदान मैदान पर एक मोर्चा निकाला था। उस मोर्चा में 60 हजार लोग सामील थे और उस मोर्चा। में नारा लगाया गया था की ये आजादी झुठी है, देश की जनता भूखी है। अण्णाभाउ साठे को इस मोर्चा के माध्यम से ये बताना था की हमारे लिये ये आजादी झुठी है। देश को मिली आजादी हमारे लिये नहीं है। क्यों की आज भी करोडो भूकमरी के शिकार है। याने अण्णाभाउ ने 1947 को कही हुयी बात 2017 में सच साबीत हो रही है। आज देश में बडे पैमाने पर अनाज उपलब्ध होने के बाद भी करोडो लोक भूकमरी के शिकार है। हजारो टन अनाज गोदामो में सड जाता है। हजारो टन अनाज चुहे खा जाते है मगर इस देश के मूलनिवासी लोगों को नहीं दिया जाता। इतना दूर तक अण्णाभाउ सोचते थे। इससे साबीत होता है की 1947की आजादी हमारी आजादी नहीं है तो विदेशी ब्राम्हणों की आजादी है।
आजाद भारत के सबसे सयाने महापुरुष राष्ट्रपित जोतिराव फुले इन्हे गोखले और रानडे द्वारा आजादी के आंदोलन में सामील होने के लिए निमंत्रण दिया गया। इस पर राष्ट्रपिता जोतिराव फुले ने गोखले और रानडे को कहा। आज ब्राम्हण लोग हमारे समाज के साथ असमानता का व्यवहार करते हो अगर आपका इस देश पर राज आया तो आप हमारे साथ समता का बर्ताव करोगे इसकी क्या गॅरंटी? जाओ—जाओ मैं नहीं आउंगा आपके आजादी के आंदोलन में। इस पर राष्ट्रपिता जोतिराव फुले बहुजन समाज के लोगो का कहते है, जब तक अंग्रेज भारत में है तब तक आप लोगो को ब्राम्हणो की गुलामी से मुक्त होने का अवसर है। इसके लिए आप लोगो ने जल्दी करनी चाहिये। फुलेजी ने यह नहीं कहा की अंग्रजो के गुलामी गुलामी से मुक्त हो जाओ। फुले कहते है की जबतक अंग्रज है तबतक अवसर है ब्राम्हणो के गुलामी से मुक्त होने का। इसलिए आप लोगो ने जल्दबाजी करनी चाहिये। फुलेजी के कहे अनुसार यही सिद्ध होता है की तथाकथित आजादी का आंदोलन यह बहुजन समाज के आजादी का आंदोलन ना होकर ब्राम्हणो के आजादी का आंदोलन है। इसलिए फुलेजी भी ब्राम्हणो के आजादी के आंदोलन में सामील नहीं हुये। अपने समाज के लिए अलग से आजादी का आंदोलन चलाया।
एक बार भटमान्य बाल गंगाधर तिलक छत्रपती शाहू महाराज को मिलने आये और कहने लगे की आप जैसे राजा लोग अगर आजादी के आंदोलन में सामील होते है तो देश को जल्द आजादी मिल सकती हैं इसपर छत्रपती शाहू महाराज तिलक को कहते है, तिलक आप जैसे ब्राम्हण लोग मेरे जैसे राजा लोगो का अपमान करते हो, शूद्र कहते हो अगर आपका राज आया तो यह जनता का क्या होगा? आगे शाहू महाराज तिलक को कहते है, तिलक मेरा समाज यह भेडबकरी का समाज है, मै उस समाज को लोमडी के झुंड में भेजना नहीं चाहता। इसका मतलब छत्रपती शाहू महाराज को भी लगता था की ये तथाकथित आजादी का आंदोलन ये बहुजन समाज के आजादी का
आंदोलनन नहीं था। अगर ऐसा होता तो शाहू महाराज सामील होते. शाहू महाराज इस आंदोलन में शामिल होते है तो देश को जल्दी ही आजादी मिल सकती है इस पर बाबासाहेब अम्बेडकर ने लाला लाजपत राय को
कहा आप लोग मुझे भारत मै पढ़ने नहीं देते। इधर आया हूँ तो कम से कम पढ़ने तो दो। भारत आने पर इस पर विचार करूँगा।
डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर भारत आने के बाद बहिष्कृत भारत इस
अख़बार के अग्रलेख में लिखते हैं गुलामी में जिनकी बाते सहन नहीं होती
आजादी में उनकी लातें खानी होंगी आज बाबासाहेब की तब कही हुई
बाते सत्य साबित हो रही है। आज बहुजन समाज में भीषण समस्याएं
पैदा हो गई हैं अगर तथाकथित आजादी बहुजन समाज की होती
तो आजादी के 70 साल बाद भी ये समस्या पैदा न होती बल्कि इन
समस्याओ का समाधान किया होता । बहुजन समाज आज भी ब्राह्मणवादियों की लातें खा रहा है।
आजादी हमारे लिए एक अफवा है इसलिए दिल्ली लालकिले से
हर साल प्रचार किया जाता है की हम आजाद हुए। जब दिल्ली के
लालकिले से प्रचार किया जाता है तब जो आजाद नहीं हुए हैं उन
लोगों को भी लगता है की हम आजाद हुए । ब्राह्मणवादियों के द्वारा
हर साल आजादी का ये प्रचार इसलिए किया जाता है ताकि जो लोग
आजाद नहीं हुए वो लोग अपनी आजादी का आंदोलन चला सकते है
ये लोग अपनी आजादी का आंदोलन न चलायें इसलिए दिल्ली के लालकिले से देश का प्रधान मंत्री हरसाल देश के लोगो को संबोधित
करता है और आजादी मिलने का दम भरता है
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Wednesday 23 August 2017
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