Translate

Saturday 18 November 2017

पद्मावती और फूलन देवी
जो भारत के सभ्य समाज के लोग रानी पद्मावती के अपमान पर भंसाली को पीट रहे थे, कभी वही समाज थियेटर मे फूलन देवी को नग्न देखकर ताली बजा रहा था।
जी हाँ जब शेखर कपूर ने फूलन देवी पर बैंडिट क्वीन (Bandit queen) फिल्म बनायी थी तो उसमे फूलन को कई बार नग्न दिखाया गया था। तब कोई सेना नही आई थी इसका बिरोध करने!!! क्या फूलन देवी महिला नही थी या किसी की बेटी नही थी।
पद्मावती ने अगर अपनी लाज बचाने के लिए जौहर (जलती आग मे कूद जाना) का साहस दिखाया था तो फूलन ने चण्डी का रूप धारण करके अपने आबरू के लुटेरो को मौत के घाट उतारा था। तब तो इन्ही के जाति मे से एक ने जाकर उसी वीरांगना की हत्या कर दी थी।
क्या सवर्ण समाज की नारियो का बस सम्मान ही सम्मान है। अगर अलाउद्दीन खिलजी नीच था तो वे लोग क्या थे जिन्होने फूलन देवी को बेआबरू किया था।
भारत का सवर्ण समाज अपने आपको कितना सभ्य संस्कारी एवं नारी का सम्मान करने वाला होने का दिखावा करता है। पर अंदर से कितना खोखला है। इनके लिए मान-मर्यादा इतिहास मे दर्ज हर वर्ग की महिला के लिए नही बल्कि एक वर्ग विशेष के महिला के लिए है

Saturday 16 September 2017


🌹🙏🏻जय मूलनिवासी🙏🏻🌹

   भाजपा को जो ताकात मिलती हैं वो ताकात सिफ़ॅ और सिफ़ॅ ज्यादातर ओबीसी से मिलती हैं क्यो ओबीसी के लोग खुदको भारतीय नहीं मानकर हिन्दु मानतें है | ईनका प्रमूख कारण है ओबीसी के लोग RSS की हिन्दु बनाने की विचारधारा से ज्यादा ग्रसित है| जब की ऐससी और ऐसटी के लोग बहूत ही कम संख्या मे है| कांग्रेस, भाजपा, भाकपा, आप पाटीॅ, हिन्दु वाद, गांधीवाद यह सब शब्द ब्राह्मणवाद का  हथियार है| ईनका ओबीसी में ज्यादा उपयोग होता है| केन्द्र मे ओबीसी की संख्या ५२% है और गुजरात में ५४% है| लोकिन यह ओबीसी के ज्यादातर लोग खुदको ऐससी, ऐसटी के लोगों को नींचा मानतें है और हिन्दु मे से जातिवादी बन जाते है|
संध(RSS) के लोग ईनका
(युज ऐन्ड़ थ्रो)'उपयोग करो और फ़ेंक दो' कर देते है| यह ऐक परम सत्य है ईसको कतई नकारा नहीं जा सकता है| ओबीसी के
५४% जन संख्या में से बहूत ही कम लोग हमारें मागॅदाता तथागत बूद्ध, महावीर, गुरुनानक, सत कबीर, सत रैदास, छत्रपति शिवाजी महाराज, १७वी सदी के सामाजिक क्रांति के पितामह महात्मा ज्योतिबा फ़ूले, माता सावित्रीबाइ फ़ूले, डॉ.बाबा साहब आंबेडकर कोल्हापूर के नरेश एवं आरक्षण के जनक शाहूजी महाराज, दक्षिण भारत मे रामा सामी पेरियार और नारायणा गुरु पूवॅ भारत मे बिरसा मुंडा बहूजन नायक मान्यवर साबह कांशीराम ईतियादी को जानतें है| ज्यादातर ओबीसी के यह हमारे मूलनिवासी बहूज़नों के महापुरुषों और महानायकों को जानतें ही नहीं है| कि यही लोग हमारें सच्चे मागॅदशॅक है| ईनको जाने बिना, समज़े बिना ईस भारत देश का हुकमरान बनना असंभव है| ओबीसी के लोगों को भारतीय संविधान में ज्यादा विश्वास रखना होगा
८५% मूलनिवासी बहूज़नों का सामाजिक, आथिॅक, राजनितीक, शैक्षणिक दस्तावेज़ है ईनमें हमारें महापुरुषों और महानायकों के त्याग और बलिदान की भावनाऐं सम्मलित हैं| भारतीय संविधान ने हमें मानवता और समानता का अवसर कराया है| जो हजारों साल से मानवता और समानता से वंचित थे|
ओबीसी, ऐससी, ऐसटी के लोग उठ़ो जागो और संविधान बचाओ देश बचाओ ईसी में ही हम ८५% मूलनिवासी बहूज़नों का कल्याण होगा|


” आपको ये post अच्छी लगी होगी इस post को share जरुर करें। Blog को सब्सक्राइब जरुर करें and social media पर contact करें इस post के बारे में comment करें।

Thursday 24 August 2017

हिन्दू धर्म की मूर्खताएं


1- सती प्रथा सिर्फ़ हिन्दू धर्म में ही पायी जाती थी ।

मृतक के बच्चे चाहे भीख माँगे या कोठे पर पलें, परन्तु विधवा पत्नी को पति के साथ ही जलना होता था I

2- जन्म से छोटा या बड़ा,  हिंदू धर्म मे शुरू से ही तय हो जाता था ।

बाबा साहेब आंबेडकर तो पण्डित जवाहर लाल नेहरू से चार गुना ज्यादा योग्य और महान थे, लेकिन कुछ नालायक मनुवादियों ने मरते दम तक बाबा साहेब को सम्मान नही दिया ।

3- लोग पढ़ेंगे या नाली साफ करेंगे, यह बात भी हिन्दू धर्म में जन्म से ही तय हो जाती थी ।

4- कोई इंसान इज़्ज़तदार  बनेगा या गालियाँ सुनने की मशीन बनेगा,  यह बात भी हिन्दू धर्म जन्म से ही तय करता रहा है I

5- लोग कौन सा काम करेंगे और  कौन सा नही करेंगे,  यह बात भी हिंदू धर्म जन्म से तय कर देता था I

6-  ज्यादातर ब्राह्मणों के तो मज़े ही मज़े थे, क्योंकि उनके लिए तो जन्म से ही सुख, सम्मान और सुविधाओं के रास्ते खुल जाते थे ।

कुछ ब्राह्मण तो  चार छः श्लोक और चार छः  कथाएँ सुनाकर पूरी जिंदगी भर खाते रहते थे, उन्हें ज्यादा मेहनत करने की कोई जरूरत ही नही पड़ती थी ।

और जो भी आदमी ब्राह्मणवाद का विरोध करता था, कटटर ब्राह्मण उसे अपनी साजिशों से बर्बाद कर देते थे ।

7- गरीबों की कन्याओं को मंदिर मे देवदासी बनाकर उनका यौन शोषण करने की मूर्खतापूर्ण परम्परा भी हिन्दू धर्म में ही पायी जाती थी ।

दहेज जैसा मूर्खतापूर्ण कार्य हिन्दू धर्म मे बड़ी सादगी से होता रहा है I

8- हिन्दू धर्म में एक तरफ महिला की मूर्ति बनाकर पूजते हैं, दूसरी तरफ भारत में पिछले 10 साल मे करोड़ों कन्याओं की भ्रूण हत्या कर दी गयी है, मनुस्मृति ने तो महिलाओं की गरिमा को खत्म कर दिया है ।

9- जातिप्रथा हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी मूर्खतापूर्ण खोज है, जाति मरते दम तक इंसान का पीछा नही छोड़ती ।

बाबा साहेब आंबेडकर, कांशीराम साहेब, और मायावती जी जैसे नेता पूरी जिंदगी जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ते रहे हैं,  लेकिन कटटर मनुवादी किसी ना किसी रूप में जाति व्यवस्था को बचा ही लेते हैं ।

10- बाल विवाह तो हिंदुओं की शान रही हैं I

11- अक्सर अमीरी-ग़रीबी भी हिन्दू धर्म में जाति के अनुसार ही तय होती रही  है ।

ज्यादातर कटटर मनुवादी इस बात को बर्दाश्त ही नही कर पाते कि SC और ST समाज के लोग अमीर बनकर सुख, सम्मान और शान से जी सकें ।

अगर SC या ST समाज का कोई अफसर या नेता थोड़ा अमीर होने लगता है, तो कटटर हिंदुओं की आँखों में वो काफी ज्यादा खटकता रहता है ।

कुछ कटटर हिन्दूओं को तब तक शान्ति नही मिलती, जब तक वो SC और ST अफसरों और नेताओं को भ्रष्टाचार के मामलों फंसा नही देते ।

12- ज़मींदार भी यहाँ जाति के आधार पर होते रहे हैं ।

SC और ST समाज के किसान कहीं जमींदार ना बन जाएँ, इसीलिए उनकी जमीनें छीन ली जाती थीं ।

13- हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने कोई महान खोज नही कीं ।

जितनी भी खोजें कीं, उनमे से ज्यादातर खोजें मूर्खतापूर्ण ही थीं,   जिनका कोई उपयोग समाज के लिए नहीं किया जा सकता ।

14- जिस तरह से SC और ST समाज के लोगों को पढ़ने से रोका गया,   वैसा कमीनापन किसी और धर्म में नही पाया गया है ।

15- नीची जाति की महिलाओं का बलात्कार करने  को कुछ लोग अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते रहे ।

और नीची जाति के लोग जब विरोध करते थे, तो उन्हें उलटा लटकवाने की मूर्खतापूर्ण परम्परा भी हिन्दू धर्म में रही है ।

लेकिन फूलन देवी जैसी बहादुर महिला ने अपने साथ हुए जुल्म का सही बदला लेकर साबित कर दिया कि SC, ST और OBC समाज के लोग हालात के शिकार तो हैं, लेकिन किसी के सामने झुकने को तैयार नही हैं ।

16- कुछ हरामखोरों ने तो दलितों को कभी स्कूलों मे घुसने ही नही दिया,  क्या कोई और धर्म ऐसा कर सकता हैं?

17- जिन मंदिरों में कुत्ते और बिल्ली भी घुस जाते थे, उन मंदिरों से SC और ST समाज के लोगों को गालियाँ देकर भगा दिया जाता था ।

लेकिन SC और ST समाज के करोड़ों जागरूक लोगों ने हिन्दू धर्म को ठुकराकर मन्दिरों को भी टाटा बाय बाय कर दिया, हमेशा हमेशा के लिए ।

बहुत कुछ है हिन्दू धर्म की मूर्खताओं की धज्जिया उड़ाने को, लेकिन अभी सिर्फ  इतना ही काफी है ।

हिंदू धर्म बर्बाद हुआ, क्योंकि यहाँ:---
--बच्चा हो, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–नाम रखो,  तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–गृह प्रवेश करो, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–पाठ करवाओ,  तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–कथा करवाओ, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–मंदिर जाओ, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–शादी हो,  तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–कोई मर गया हो,  तो भी ब्राह्मण को पैसे खिलाओ!!

दरअसल ब्राह्मणों ने खुद ही हिन्दू धर्म को तमाशा बना दिया है ।

ब्राह्मणों ने हज़ारों साल तक sc/st/obc के पूर्वजो को खूब गालियाँ
सुनवाई है लेकिन आजकल खुद भी हर जगह गालिया ही सुन रहे हैं
अगर आपको विश्वास न हो तो बसपा ,बामसेफ ,आरपीआई के कार्यक्रमों
मेंमें जाकर देख लीजिये ।
इसके बावजूद कुछ ब्राह्मण तो अभी भी जाति व्यवस्था को सही साबित करने  की कोशिश करते हैं
रही सही कसर पाखंडी बाबाओ ने पूरी कर दी है।
पाखंडी बाबाओ ने धर्म के नाम पर काफी लूट खसोट मचा रखी है

निर्मल बाबा
सुधांशु बाबा
इच्छाधारी बाबा
कच्छाधारी बाबा
और भी सारे पाखंडी बाबाओं ने धर्म के नाम पर यापमी दुकान खोलकर
लूट मचा रखी है
ज्यदातर पाखंडी बाबा दूसरे लोगों को तो माया मोह से दूर रहने के उपदेश
देते रहते हैं लेकिन खुद अय्यासी करते रहते हैं।
दरअसल हिन्दू धर्म पूरी तरह से नौटंकी के सिवा कुछ भी नहीं है ।
क्योकि rss सिफ धर्मान्तरण पर बोलता है लेकिन हिन्दू धर्म में घुसी
हुई जाति व्यवस्था, नफरत ,हरामखोरी और पाखंड पर कुछ नहीं बोलता
रामराज में हिन्दू धर्म की नैया में सवार होकर लूट मचने वाले पाखंडी
बाबा ही सबसे ज्यादा मजे में हैं वैसे हिन्दू धर्म में सुधार होना ही मुश्किल है ।

” आपको ये post अच्छी लगी होगी इस post को share जरुर करें। Blog को सब्सक्राइब जरुर करें and social media पर contact करें इस post के बारे में comment करें।

Wednesday 23 August 2017

फर्जी स्वतंत्रता

1947 को मिली हुई आज़ादी सभी लोगों कि ना होकर केवल सत्ता का हस्तांतरण है। याने अंग्रेजों ने भारत के लोगो को सत्ता सौंप दी। इसलिए ये हमारे आज़ादी का दिन नहीं है।
भारत में रहनेवाला बहुजन समाज आज भी गुलाम है। क्योंकी आज़ादी का मतलब अपने भविष्य का फैसला करने का, खुद निर्णय लेना माने आज़ादी। आज जिन लोगो के लिए ये आज़ादी है उन आज़ाद लोगों को अपले भविष्य का निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। उनके भविष्य का निर्णय सरकार ले रही है। अगर आज़ादी का मतलब अपने भविष्य का फैसला करने का निर्णय लेना इस बात को थोडी देर के लिए सच माने तो सही में बहुजन समाज के लोगो को अपने निर्णय लेने का अधिकार है क्या? ऐसा सवाल खडा होता है।

   ब्राम्हणो के तथाकथित आज़ादी के आंदोलन में बहुजन समाज के महापुरुष सामील नहीं थे। इसलिए भी कहा जा सकता है की ये बहुजन के आजादी का आंदोलन नहीं था। क्योंकी ये आजादी का आंदोलन बहुूजन समाज के लिए नहीं था केवल और केवल ब्राम्हणो के आजादी के लिए था ऐसा हमारे महापुरुषों को लगता था। इसलिए बहुजन समाज के महापुरुष इस आजादी के आंदोलन में सामील नहीं थे। अगर हमारे महापुरुष ब्राम्हणो के आजादी के आंदोलन में सामील नहीं थे तो क्या कर रहे थे? ऐसा सवाल कुछ लोग खडा कर सकते है। हमारे महापुरुष ब्राम्हणो के आजादी के आंदोलन में सामील ना होकर बहुजन समाज के आजादी का अलग से आंदोलन चला रहे ​थे। क्यों की उन्हे पता था हमे और हमारे समाज को इंग्रजो ने नहीं तो ब्राम्हणो ने, उनकी व्यवस्थाने गुलाम बनाया है। इसलिए हमारे महापुरुषों का आंदोलन इंग्रजो के गुलामी से नहीं तो ब्राम्हणो के गुलामी से मुक्त करने का था।

   तथाकथित आजादी के दुसरे दिन याने 16 अगस्त 1947 को जब पुरा देश आजादी का जल्लोष मना रहा था। ऐसे स्थिती में सत्यशोधक साहित्यरत्न अण्णाभाउ साठे ने जोर की बारीश होने के बाद भी और पोलीस प्रशासन मना करने के बाद भी मुंबई के आजाद मैदान मैदान पर एक मोर्चा निकाला था। उस मोर्चा में 60 हजार लोग सामील थे और उस मोर्चा। में नारा लगाया गया था की ये ​आजादी झुठी है, देश की जनता भूखी है। अण्णाभाउ साठे को इस मोर्चा के माध्यम से ये बताना था की हमारे लिये ये आजादी झुठी है। देश को मिली आजादी हमारे लिये नहीं है। क्यों की आज भी करोडो भूकमरी के शिकार है। याने अण्णाभाउ ने 1947 को कही हुयी बात 2017 में सच साबीत हो रही है। आज देश में बडे पैमाने पर अनाज उपलब्ध होने के बाद भी करोडो लोक भूकमरी के शिकार है। हजारो टन अनाज गोदामो में सड जाता है। हजारो टन अनाज चुहे खा जाते है मगर इस देश के मूलनिवासी लोगों को नहीं दिया जाता। इतना दूर तक अण्णाभाउ सोचते थे। इससे साबीत होता है की 1947की आजादी हमारी आजादी नहीं है तो विदेशी ब्राम्हणों की आजादी है।

   आजाद भारत के सबसे सयाने महापुरुष राष्ट्रपित जोतिराव फुले इन्हे गोखले और रानडे द्वारा आजादी के आंदोलन में सामील होने के लिए ​निमंत्रण दिया गया। इस पर राष्ट्रपिता जोतिराव फुले ने गोखले और रानडे को कहा। आज ब्राम्हण लोग हमारे समाज के साथ असमानता का व्यवहार करते हो अगर आपका इस देश पर राज आया तो आप हमारे साथ समता का बर्ताव करोगे इसकी क्या गॅरंटी? जाओ—जाओ मैं नहीं आउंगा आपके आजादी के आंदोलन में। इस पर राष्ट्रपिता जोतिराव फुले बहुजन समाज के लोगो का कहते है, जब तक अंग्रेज भारत में है तब तक आप लोगो को ब्राम्हणो की गुलामी से मुक्त होने का अवसर है। इसके लिए आप लोगो ने जल्दी करनी चाहिये। फुलेजी ने यह नहीं कहा की अंग्रजो के गुलामी गुलामी से मुक्त हो जाओ। फुले कहते है की जबतक अंग्रज है तबतक अवसर है ब्राम्हणो के गुलामी से मुक्त होने का। इसलिए आप लोगो ने जल्दबाजी करनी चाहिये। फुलेजी के कहे अनुसार यही सिद्ध होता है की तथाकथित आजादी का आंदोलन यह बहुजन समाज के आजादी का आंदोलन ना होकर ब्राम्हणो के आजादी का आंदोलन है। इसलिए फुलेजी भी ब्राम्हणो के आजादी के आंदोलन में सामील नहीं हुये। अपने समाज के लिए अलग से आजादी का आंदोलन चलाया।

   एक बार भटमान्य बाल गंगाधर तिलक छत्रपती शाहू महाराज को मिलने आये और कहने लगे की आप जैसे राजा लोग अगर आजादी के आंदोलन में सामील होते है तो देश को जल्द आजादी मिल सकती हैं इसपर छत्रपती शाहू महाराज तिलक को कहते है, तिलक आप जैसे ब्राम्हण लोग मेरे जैसे राजा लोगो का अपमान करते हो, शूद्र कहते हो अगर आपका राज आया तो यह जनता का क्या होगा? आगे शाहू महाराज तिलक को कहते है, तिलक मेरा समाज यह भेडबकरी का समाज है, मै उस समाज को लोमडी के झुंड में भेजना नहीं चाहता। इसका मतलब छत्रपती शाहू महाराज को भी लगता था की ये तथाकथित आजादी का आंदोलन ये बहुजन समाज के आजादी का
आंदोलनन नहीं था। अगर ऐसा होता तो शाहू महाराज सामील होते. शाहू महाराज इस आंदोलन में शामिल होते है  तो देश को जल्दी ही आजादी मिल सकती है इस पर बाबासाहेब अम्बेडकर ने लाला लाजपत राय को
कहा आप लोग मुझे भारत मै  पढ़ने नहीं देते। इधर आया हूँ तो कम से कम पढ़ने तो दो। भारत आने पर इस पर विचार करूँगा।
डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर भारत आने के बाद बहिष्कृत भारत  इस
अख़बार के अग्रलेख में लिखते हैं गुलामी में जिनकी बाते सहन नहीं होती
आजादी में उनकी लातें खानी होंगी आज बाबासाहेब की तब कही हुई
बाते सत्य साबित हो रही है। आज बहुजन समाज में भीषण समस्याएं
पैदा हो गई हैं अगर तथाकथित आजादी बहुजन समाज की होती
तो आजादी के 70 साल बाद भी ये समस्या पैदा न होती बल्कि इन
 समस्याओ का समाधान किया होता । बहुजन समाज आज भी ब्राह्मणवादियों की लातें खा रहा है।
आजादी  हमारे लिए एक अफवा है इसलिए दिल्ली लालकिले  से
हर साल प्रचार किया जाता है की हम आजाद हुए। जब दिल्ली के
लालकिले से प्रचार किया जाता है तब जो आजाद नहीं हुए हैं उन
लोगों को भी लगता है की हम आजाद हुए । ब्राह्मणवादियों के द्वारा
हर साल आजादी का ये प्रचार इसलिए किया जाता है ताकि जो लोग
आजाद नहीं हुए वो लोग अपनी आजादी का आंदोलन चला सकते है
ये लोग अपनी आजादी का आंदोलन न चलायें इसलिए दिल्ली के लालकिले से देश का प्रधान मंत्री हरसाल देश के लोगो को संबोधित
करता है और आजादी मिलने का दम भरता है



” आपको ये post अच्छी लगी होगी इस post को share जरुर करें। Blog को सब्सक्राइब जरुर करें and social media पर contact करें इस post के बारे में comment करें।

अप्प दीपो भव

बौद्ध दर्शन का एक सूत्र वाक्य है- ‘अप्प दीपो भव’ अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो। तथागत सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के कहने का मतलब यह है कि कि...