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Saturday 19 August 2017

अंधश्रद्धा से परिपूर्ण मानसिक व धार्मिक गुलाम


कुछ दिन पहले एक धार्मिक प्राणी, हमारे पास रात गुज़ारने आया, वह थोड़ा बीमार था..
लेकिन धार्मिक स्कूल में पढ़ा था तो दिमाग़ी तौर पे बहुत बीमार था.
मैं रात को दूसरे लड़कों को जीव विज्ञान के बारे में कुछ बता रहा था,
धार्मिक प्राणी बोला, "ये सब झूठ है, साइंस की बातों के पीछे लगकर ज़िंदगी बर्बाद मत करो, साइंस-वाइंस कुछ नहीं होती "

मैंने उसकी दवा उठाकर अपनी जेब में डाली,  उसका मोबाइल ऑफ़ करके अपनी जेब में डाला.. और रूम की लाइट और पंखा बंद कर दिया.
धार्मिक प्राणी बोला, "ये क्या कर रहे हैं ?"
मैंने कहा, "ये दवाई, मोबाइल, पंखा, बल्ब ये सब साइंस के आविष्कार हैं.. अब अंधेरे में बैठकर मच्छर मार और बोल कि साइंस कुछ नहीं होती "
धार्मिक प्राणी खिसयानी हंसी हंसने लगा.
मैंने लाइट ऑन की और उससे कहा, "साइंस से जुड़ी हर चीज़ का सिर्फ़ दस दिन त्याग करके दिखा दे, उसके बाद बोलना कि साइंस कुछ नहीं होती "
वह प्राणी बिना कुछ बोले चुपचाप सो गया.
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ऐसे धार्मिक प्राणियों की कमी नहीं है, जो साइंस की हर चीज़ इस्तेमाल करते हैं और साइंस के विरुद्ध भी बोलते हैं.
साइंस के जिन अविष्कारों ने हमारे जीवन और दुनिया को बेहतर बनाया है, वे सब अविष्कार उन्होंने किये, जिन्होंने धार्मिक कर्मकांडों में समय बर्बाद नहीं किया.

आज कोई भी धार्मिक प्राणी साइंस से संबंधित चीज़ों के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता, लेकिन ये एहसान फ़रामोश साइंसदानों का एहसान नहीं मानते.. ये उस काल्पनिक शक्ति का एहसान मानते हैं, जिसने मानव के विकास में बाधा डाली है.. जिसने मानवता को टुकड़ों में बांटा है.

साइंसदान, अक्सर नास्तिक होते हैं... लेकिन जाहिल प्राणी कहेंगें," साइंसदानों को अक्ल तो हमारे God ने ही दी है"
लेकिन ऐसे मूर्ख इतना नहीं सोचते कि उनके God ने सारी अक्ल नास्तिकों को क्यों दे दी, धार्मिक प्राणियों को मन्दबुद्धि क्यों बनाया ?

पिछले 150 साल में, जिन अविष्कारों ने दुनिया बदल दी, वे ज़्यादातर नास्तिकों ने किये या उन आस्तिकों ने किये जो पूजा-पाठ, इबादत नहीं करते थे.

अंधविश्वास और कट्टरता से भरे धर्म वालों ने ऐसा कोई अविष्कार नहीं किया, जिससे दुनिया का कुछ भला होता.

इन्होंने अलग किस्म के आविष्कार किये, ऊपरवाला ख़ुश कैसे होता है ? .. ऊपरवाला नाराज़ क्यों होता है ?..स्वर्ग में कैसे जायें ? ..नरक से कैसे बचें ? स्वर्ग में क्या-क्या मिलेगा ?.. नरक में क्या-क्या सज़ा है ?..हलाल क्या है, हराम क्या है ?..बुरे ग्रहों को कैसे टालें ? .. मुरादें कैसे पूरी होती है ?.. पाप कैसे धुलते हैं ?.. ऊपरवाला किस्मत लिखता है.. वो सब देखता है.. वो हमारे पाप-पुण्य का हिसाब लिखता है.. जीवन-मरण उसके हाथ में है.. उसकी मर्ज़ी बगैर पत्ता नहीं हिलता.. ऊपरवाला खाने को देता है.. वो तारीफ़ का भूखा है.. वो पैसे लेकर काम करता है..
पित्तरों की तृप्त कैसे करें ? मंत्रों द्वारा संकट निवारण.. हज़ारों किस्म के शुभ-अशुभ.. हज़ारों किस्म के शगुन-अपशगुन.. धागे-ताबीज़.. भूत-प्रेत.. पुनर्जन्म.. टोने-टोटके.. राहु-केतु.. शनि ग्रह.. ज्योतिष.. वास्तु-शास्त्र...पंचक. मोक्ष.. हस्तरेखा..मस्तक रेखा..मुठकरणी.. वशीकरण.. जन्मकुंडली..काला जादू.. तंत्र-मन्त्र-यंत्र.. झाड़फूंक.. वगैरह.. वगैरह..
इस किस्म के इनके हज़ारों अविष्कार हैं..
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इन्सान को उसके विकसित दिमाग़ ने ही इन्सान बनाया है, नहीं तो वह चिंपैंजी की नस्ल का एक जीव ही है,
जो इन्सान अपना दिमाग़ प्रयोग नहीं करते, वे इन्सान जैसे दिखने वाले जीव होते हैं.. वे इन्सान नहीं होते..

अपने दिमाग़ का बेहतर इस्तेमाल कीजिये..अंदर जो अंधविश्वासों का कचरा भरा है, उसको जला दीजिये.. अंधेरा मिट जायेगा.. आपके अंदर रौशनी हो जायेगी...
पहले खुद जागो फिर दूसरों को जगाओ अन्धविश्वास को दूर भगाओ


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Friday 18 August 2017

हिन्दू धर्म की असलियत


*जो Sc St Obc अपने आपको हिन्दू समझते है वे ध्यान दे ।*

एक मंदिर में बिना नहाए भी जा सकता है दूसरा नहा-धोकर भी मंदिर में नहीं घुस सकता,
तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?
एक का पाँव पूजने का और दूसरे की पीठ पूजने का ग्रंथ आदेश देते हैं,
तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

कोई आरक्षण वाला है कोई आरक्षण वाला नहीं है,
 तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

एक आरक्षण से सहमत है दूसरा आरक्षण का विरोधी है,
तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

एक कायम उच्च है और एक कायम निम्न है,
 तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

एक लगातार सत्ता में रहता है दूसरा लगातार सत्ता से बाहर है,
 तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

एक सभी संवैधानिक पदों पर है दूसरा वैधानिक हक से भी वंचित है ,
तो दोनों कैसे हिन्दू हैं ?

*हिन्दू धर्म है या सत्ता पाने का एक राजनीतिक षड्यंत्र है ?*

हिन्दू होकर भी हिन्दू, हिन्दू को अपनी बेटी नहीं देता
है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू को अपनी थाली में रोटी
नहीं देता है ।
हिन्दू होकर भी हिन्दू, हिन्दू को मान नहीं देता,
सम्मान नहीं देता,
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के ही अधिकार छीन लेता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू गरीबों का पेट काट लेता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के बच्चों से स्कूल-कालेजों में
भेदभाव करता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू को ही शासन-सत्ता में आगे
बढ़ते नहीं देखना चाहता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू के ही बाल-बच्चो का गला
काट देता है ।
हिन्दू होकर, हिन्दू, हिन्दू की काबिलियत पर ऊँगली
उठाता है ।
हिन्दू होकर ही हिन्दू, हिन्दू को एक समान अपने जैसा
इंसान होने का दर्जा नहीं देता है अपने को उच दूसरे ओर नीच समझता है ।
ये कैसा हिन्दू है और कैसा इसका हिन्दू धर्म है❓

*ये धर्म नहीं, स्वार्थ का पुलिन्दा है, सिर्फ जातियों का एक झुंड है और बहुजनों को गुलाम बनाए रखने की साजिश है ।*

*हम हिन्दू ना थे , ना है , हम सिर्फ एक षड्यंत्र के शिकार है।*
✒जब तक तुम हिन्दू रहोगे तुम्हारा स्थान सबसे नीचा रहेगा।
✒ तुम हिन्दू कभी नहीं थे, तुम आज भी हिन्दू नहीं हो।
✒ तुम हिन्दू धर्म के गुलाम हो।
✒ तुम्हें धर्म का भी गुलाम बना लिया गया है।
✒ हिन्दू धर्म छोड़ना धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि गुलामी की जंजीरे तोड़ना है।
जाति के अधार पर किसी को ऊँचा मानना पाप है और नीचा मानना महापाप।
✒ हिन्दू धर्म की आत्मा वर्ण जाती और ब्रह्मण हितेषी कर्मकांडो मैं है।
✒ वर्ण और जाति के बिना हिन्दू धर्म की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।
✒ हिन्दू धर्म वर्णों का है तुम किसी भी वर्ण में नहीं आते हो, जबरदस्ती सबसे नीचे वर्ण में रखा गया है।
✒ हिन्दू धर्म के कर्मकांडों को तुम्हे नहीं करने दिया गया और तुम नहीं कर सकते हो।
✒ हिन्दु धर्म के भगवान उनके अवतार और उनके देवी देवता ना तो तुम्हारे हैं और न तुम उनके हो।
✒ इसलिए वे तुम्हारे साये से भी परहेज करते आये हैं और आज भी कर रहे हैं।
✒ कुत्ते बिल्ली की पेशाब से उन्हें कोई परहेज नहीं है परन्तु तुम्हारे द्वारा दिए गए गंगा जल से अपवित्र
हो जाते हैं।
✒ उनकी पुनः शुद्धि गाय के मल-मूत्र से होती है।
✒याद रखो हिन्दू धर्म के देवी देवता ही तुम्हारे पूर्वजों के हत्यारे हैं।
✒धर्म मनुष्य के लिए है मनुष्य धर्म के लिए नहीं और जो धर्म तुम्हें इन्सान नही समझता वह धर्म नहीं अधर्म का बोझ है।
✒जहाँ ऊँच और नीच की व्यवस्था है, वह धर्म नही, गुलाम बनाये रखने की साजिश है।
✒ हिन्दू धर्म मे कर्म नहीं जाति प्रधान है।

*✍डॉ.भीमराव अम्बेडकर*




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🙏

गन्दी रामायण


संविधान के अनुच्छेद 45 में 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त करने की बात लिखी गयी है।
लेकिन तुलसी की रामायण, इसका विरोध करने की वकालत करती है।

1- *अधम जाति में विद्या पाए,*
    *भयहु यथाअहि दूध पिलाए।*

अर्थात जिस प्रकार से सांप को दूध पिलाने से वह और विषैला (जहरीला) हो जाता है, वैसे ही शूद्रों (नीच जाति ) को शिक्षा देने से वे और खतरनाक हो जाते हैं।

संविधान जाति और लिंग के आधार पर भेद करने की मनाही करता है तथा दंड का प्रावधान देता है।
लेकिन तुलसी की रामायण (राम चरित मानस) जाति के आधार पर ऊंच नीच मानने की वकालत करती है।

देखें : पेज 986, दोहा 99 (3), उ. का.
2- *जे वर्णाधम तेली कुम्हारा,*
   *स्वपच किरात कौल कलवारा।*

अर्थात तेली, कुम्हार, सफाई कर्मचारी,आदिवासी, कौल, कलवार आदि अत्यंत नीच वर्ण के लोग हैं।

यह संविधान की धारा 14, 15 का उल्लंघन है। संविधान सब की बराबरी की बात करता है।

तथा तुलसी की रामायण जाति के आधार पर *ऊंच-नीच* की बात करती है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है।

देखें : पेज 1029, दोहा 129 छंद (1), उत्तर कांड

3- *अभीर (अहीर) यवन किरात*
*खलस्वपचादि अति अधरूप जे।*
अर्थात अहीर (यादव), यवन (बाहर से आये हुए लोग जैसे इसाई और मुसलमान आदि) आदिवासी, दुष्ट, सफाई कर्मचारी आदिअत्यंत पापी हैं, नीच हैं। तुलसी दास कृत रामायण
(रामचरितमानस) में तुलसी ने छुआछूत की वकालत की है, जबकि यह कानूनन अपराध है।

देखें: पेज 338, दोहा 12(2)अयोध्या कांड।

4-कपटी कायर कुमति कुजाती,        लोक,वेदबाहर सब भांति।
तुलसी ने रामायण में मंथरा नामक दासी(आया) को नीच जाति वाली कहकर अपमानित किया जो संविधान का खुला उल्लंघन है।

देखें : पेज 338, दोहा 12(2) अ. का.

5- *लोक वेद सबही विधि नीचा,*
   *जासु छांटछुई लेईह सींचा।*
केवट (निषाद, मल्लाह) समाज, वेद शास्त्र दोनों से नीच है, अगर उसकी छाया भी छू जाए तो नहाना चाहिए।

तुलसी ने केवट को कुजात कहा है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है। देखें :
पेज 498 दोहा 195 (1), अ.का.

6- *करई विचार कुबुद्धि कुजाती,*
    *होहिअकाज कवन विधि राती।*
अर्थात वह दुर्बुद्धि नीच जाति वाली विचार करने लगी है कि किस प्रकार रात ही रात में यह काम बिगड़ जाए।

7- *काने, खोरे, कुबड़ें, कुटिल, कूचाली, कुमतिजानतिय विशेष पुनि चेरी कहि, भरतु मातुमुस्कान।*
भारत की माता कैकई से तुलसी ने physically और mentally challenged लोगों के साथ-साथ स्त्री और खासकर नौकरानी को नीच और धोखेबाज कहलवाया है,‘कानों, लंगड़ों, और कुबड़ों को नीच और धोखेबाज जानना चाहिए, उन में स्त्री और खास कर नौकरानी को… इतना कह कर भरत की माता मुस्कराने लगी। ये संविधान का उल्लंघन है।
देखें : पेज 339,दोहा 14, अ. का.
8--तुलसी ने निषाद के मुंह से उसकी जाति को चोर, पापी, नीच कहलवाया है।
*हम जड़ जीव, जीव धन खाती,* *कुटिल कुचली कुमति कुजाती,*
*यह हमार अति बाद सेवकाई,*
*लेही न बासन,बासन चोराई।*
अर्थात हमारी तो यही बड़ी सेवा है कि हम आपके कपड़े और बर्तन नहीं चुरा लेते (यानि हम तथा हमारी पूरी जाति चोर है, हम लोग जड़ जीव हैं, जीवों की हिंसा करने वाले हैं)।
जब संविधान सबको बराबर का हक देता है, तो रामायण को गैरबराबरी एवं जाति के आधार पर ऊंच-नीच फैलाने वाली व्यवस्था के कारण उसे तुरंत जब्त कर लेना चाहिए, नहीं तो इतने सालों से जो रामायण समाज को भ्रष्ट करती चली आ रही है। इसकी पराकाष्ठा अत्यंत भयानक हो सकती है। यह व्यवस्था समाज में विकृत मानसिकता के लोग उत्पन्न कर रहे है तथा देश को अराजकता की तरफ ले जा रही है। देश के कर्णधार, सामाजिक चिंतकों,विशेष कर युवा वर्ग को तुरंत इसका संज्ञान लेकर न्यायोचित कदम उठाना चाहिए, नहीं तो मनुवादी संविधान को न मानकर अराजकता की स्थिति पैदा कर सकते हैं। जैसा कि बाबरी मस्जिद गिराकर, सिख नरसंहार करवा कर, ईसाइयों और मुसलमानों का कत्लेआम (ग्राहम स्टेंस की हत्या तथा गुजरात दंगा) कर मानवता को तार-तार पहले ही कर चुके हैं। साथ ही सत्ता का दुरुपयोग कर ये दुबारा देश को गुलामी में डाल सकते हैं, और गृह युद्ध छेड़कर देश को खंड खंड करवा सकते हैं।

*जागो*
 *शूद्र(OBC),अतिशूद्र(SC),अवर्ण(ST)*

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Tuesday 15 August 2017

एक गलत फैसला "प्रवाह" के साथ बहने का

एक बार एक नदी में हाथी की लाश बही जा रही थी।
एक कौए ने लाश देखी, तो प्रसन्न हो उठा, तुरंत उस पर आ बैठा।
यथेष्ट मांस खाया। नदी का जल पिया।
उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली।
वह सोचने लगा, अहा! यह तो अत्यंत सुंदर यान है, यहां भोजन और जल की भी कमी नहीं। फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरूं?
कौआ नदी के साथ बहने वाली उस लाश के ऊपर कई दिनों तक रमता रहा।
भूख लगने पर वह लाश को नोचकर खा लेता, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता।
अगाध जलराशि, उसका तेज प्रवाह, किनारे पर दूर-दूर तक फैले प्रकृति के मनोहरी दृश्य-इन्हें देख-देखकर वह भाव विभोर होता रहा।
नदी एक दिन आखिर महासागर में मिली।
वह मुदित थी कि उसे अपना गंतव्य प्राप्त हुआ।
सागर से मिलना ही उसका चरम लक्ष्य था, किंतु उस दिन लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई।
चार दिन की मौज-मस्ती ने उसे ऐसी जगह ला पटका था, जहां उसके लिए न भोजन था, न पेयजल और न ही कोई आश्रय। सब ओर सीमाहीन अनंत खारी जल-राशि तरंगायित हो रही थी।
कौआ थका-हारा और भूखा-प्यासा कुछ दिन तक तो चारों दिशाओं में पंख फटकारता रहा, अपनी छिछली और टेढ़ी-मेढ़ी उड़ानों से झूठा रौब फैलाता रहा, किंतु महासागर का ओर-छोर उसे कहीं नजर नहीं आया। आखिरकार थककर, दुख से कातर होकर वह सागर की उन्हीं गगनचुंबी लहरों में गिर गया। एक विशाल मगरमच्छ उसे निगल गया।
शारीरिक सुख में लिप्त उन सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भी गति उसी कौए की तरह होने वाली है, जो  आरक्षण का लाभ लेकर बाबा साहेब को भूल गए है तथा अपने को हिन्दु की नानी समझ रहे हैं बिना पूजा पाठ किये पानी नही पियेंगे। सभी हिन्दु देवी देवताओं जिसे पुजने हेतु बाबा साहेब ने मना किया था उसकी पूजा   करेगे। चारो धाम की यात्रा करेगे। किसी गरीब के बच्चे की पढ़ाई लिखाई  शादी व्याह में  कोई मदद नही करेंगे।
ऐसे लोगो की आने वाली पीढ़ी की दुर्गति होने वाली है फिर भी इन्हें समझ मे नही आ रहा है ।

जीत किसके लिए, हार किसके लिए
ज़िंदगीभर ये तकरार किसके लिए..
जो भी पाया है आरक्षण में वो चला जायेगा एक दिन
फिर ये इतना अहंकार किसके लिए।
आओ इन 24 घंटो में से एक घंटा समाज के लिए दे।बहुजनो के अच्छे भविष्य के लिए...जय भीम जय भारत नमो बुद्धाय

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अप्प दीपो भव

बौद्ध दर्शन का एक सूत्र वाक्य है- ‘अप्प दीपो भव’ अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो। तथागत सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के कहने का मतलब यह है कि कि...